Vipin Bansal

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आदमी

आदम से आदमी आदमी से सभ्य
सभ्य से आदम बनता जा रहा है आदमी
न जाने किस मोड पर जा रहा है। आदमी
सत्ता, गिरिजा, मंदिर, काबा थी कभी
आज उसे मैखाने में तबदील कर चला है। आदमी
स्वार्थ रूपी दीमक से
अपने घरों दिवारों को खोखला कर रहा है। आदमी
जिस डाल पर बैठा यह
उस डाल को काट रहा है। आदमी
इंसानियत के पतन का अध्याय लिख रहा है। आदमी
अपने विध्वंस का तांडव कर रहा है। आदमी
न जाने किस मोड पर जा रहा है। आदमी
हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई
आपस में है भाई-भाई
यह हमने सुना था। कभी
आज मजहब के नाम पर
इंसानी खून को सड़कों पर बहा रहा है। आदमी
इंसानी लाशों का सौदागर
बनता जा रहा है। आदमी
हैवानियत का नंगा नाच
नाच रहा है। आदमी
आदमियत को अतीत में
छोड़ चला है आदमी
न जाने किस मोड पर जा रहा है। आदमी
सत्ता पर चीलों की तरह मंडरा रहा है। आदमी
आदमियों के बाजार से लुप्त हो रहा है आदमी
इंसाफ के दरबार में इंसाफ खरीद-बेच रहा है आदमी आगे बढ़ने की चाह में, पीछे लौट रहा है आदमी
आदम से आदमी आदमी से सभ्य
सभ्य से आदम बनता जा रहा है। आदमी
न जाने किस मोड पर जा रहा है। आदमी

          विपिन बंसल

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2 Comments

🤫

06-Oct-2021 11:19 AM

बेहतरीन...

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Seema Priyadarshini sahay

05-Oct-2021 11:51 AM

Nice lines

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