siddiqui

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Gazal4


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प्यार के लिए गजल

जिन्दगी के कुछ हसीन पल बनके आ गये ,
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वो होठो पर मेरे गजल बनके आ गये ।।
मै तो खण्हर हो गया था जमाने के लिये ,
वो वाहो मै मेरी ताजमहल बनके आ गये ।।

कट रहा था सफर मेरा धूप मै चलते चलते,
वो रहो मै मेरी भीगे बादल बनके आ गये ।।

भूल चुका था मै शायद इश्क के अहसासो को,
वो दहलीज पर मेरी बीता कल बनके आ गये ।।

टूटे छत से बरस रही थी वूँदे तन्हायी की ,
वो सर्द रातो मै मेरी महल बनके आ गये ।।

मै भटक रहा था प्यासा रेगिस्तान मै अकेला,
वो हाथो मै मेरे मीठा जल बनके आ गये ।।

कई सबाल उठ खडे थे उनके जाने के बाद,
वो उन सारे सबालो का हल बनके आ गये ।।

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