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पिता

उंगली पकड़ें जब पिता की,

चिंता से मुक्त हो जाएं।
ठोकर लगने से पहले ही,
हमें बचाने वे आएं।

बरगद जैसा घना पेड़ हैं,
परिवार छांव में सोए।
जलते रहते सदा धूप में,
आदर्श के बीज बोए।

मेरा अस्तित्व मेरे पिता से,
मुझे संसार में लाए।
अच्छे बुरे का ज्ञान करा कर,
संघर्ष राहें बैठाए।

दुनियां में ईश्वर फरिश्ता,
पिता के रूप में देखो।
बच्चों की खुशियों में जीना,
पूज्य बापू से सीखो।

औलाद का कुबेर खजाना,
तथास्तु इच्छाएं बोले।
अच्छाई की राह पकड़ना,
भली-बुरी गाँठें खोले।

मेरे ख्वाब बुनते-बुनते,
मुख कुम्हलाया बापू का।
मंजिल पर पहुंचा कर मुझको,
बढ़ा बुढ़ापा बापू का।

हर इच्छा पूरी होती जब,
जेब खर्च सिक्के पाते।
आज कमाई अपनी फिर भी,
चाह अधूरी "श्री" पाते।

स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान) 


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8 Comments

बहुत ही सुंदर और बेहतरीन अभिव्यक्ति

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Gunjan Kamal

19-Jun-2023 02:30 AM

👏👌

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Varsha_Upadhyay

19-Jun-2023 12:59 AM

बहुत खूब

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