अन्तिम रण
कह रहा है हर कण
अब हो अन्तिम रण
हर बार किया प्रण
अब होगा अन्तिम रण
बिन मौसम भी गरजा
मौंसम में भी न बरसा
ये कैसा है घन ये कैसा है घन
तृप्त हो धरती का मन
तुम इतना बरसों हे घन
अकाल तोड़ दे यही पर दम
तुम इतना बरसो हे घन
ए दमन दामिनी दमकों
दुश्मन पर कहर बन तुम बरपो
ये खामोशी अब तज दो
कह रहा है हर कण अब हो अन्तिम रण।।
लाहौर बस में पाक गए बन शान्ति दूत
फिर भी सीधी न हो पाई कुत्ते की टेढ़ी पूंछ
आँखों में बसा कर ले गए दोस्ती का मंजर
दोस्त ने दोस्त की पीठ पर घोंप दिया खंजर
दोस्त ने दोस्ती का दिया क्या नायाब तोहफा
दोस्ती के बदले कारगिल युद्ध सौंपा
कारगिल पर की उसने चढाई
हम पर थोपी एक लड़ाई
दुश्मन को हमने मार भगाया
अपना कारगिल हमने पाया
क्यों करता अपनी वाह-वाही
कारगिल के खातिर कितनों ने है जान गँवाई
पाक पर करते गर जो चढ़ाई
तब थी तेरी वाह-वाही
बीच में अधूरी छोड़ दी तूने क्यों ये जंग
भंडार रखे जो हथियारों के
लग गया था क्या उनमें जंग
कह रहा है हर कण अब हो अन्तिम रण ॥
विमान हरण, राम मरण
बदले में लंका भेज दिए
मेघनाथ और कुम्भकर्ण
कैसे बचेगी अब अस्मत
हर घर से होगा अब सीता हरण
नामर्दो की बस्ती में
नसबंदी का चला चलन
कह रहा है हर कण
अब हो अन्तिम रण।।
संसद पर हमला
फिर भी न संभला
ये भारत देश है अपना
संसद में गर वो घुस जाते
काला अध्याय लिख जाते
धन्य धन्य हैं वो जवान
किया उनका काम तमाम
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अखबारों की रद्दी में
शहादत हो गई आज दफन
शहीदों की इस धरा पर
पैसों का चला चलन
कह रहा है कण अब हो अन्तिम रण ।।
हर कर्म नापाक है।
कहता खुद को पाक है
बड़े गजब की बात है
मासूमों के लहू से वो सना
हवस की मिट्टी से वो बना
इन्सानियत का किया बलात्कार है
कहता खुद को पाक है
न मस्जिद छोड़ी न मंदिर छोड़ा
अक्षर धाम पर हमला बोला
अक्षर धाम में मचा कोहराम
कमांडो ने किया उनका काम तमाम
अब तक कोमा में है सोया
मेरा भारत महान
शान्ति को वो हमारी
नपुंसकता जान रहे
भीख मिले हथियारों पर
वो सीना अपना तान रहे।
अब हो जाए आखिरी जंग
तुम इतना बरसो हे घन
अकाल तोड़ दे यही पर दम
ए दमन दामिनी दमको
दुश्मन पर कहर बन तुम बरपो
ये खामोशी अब तज दो
कह रहा है हर कण अब हो अन्तिम रण ।।
अखनूर के सैन्य शिविर पर
आत्मघाती हमला
ब्रिगेडियर समेत आठ को मारा
दुश्मन ने हमको ललकारा
कीमत नहीं जब अपनों की
क्या नींव धरोगे सपनों की
हर पल तुम मरते हो
अमर होने से भी तुम डरते हो
शायद तुमको प्यारा है ये तन
उम्र के आखिरी पड़ाव पर
क्या खेल खिला रहा ये मन
कह रहा है हर कण अब हो अन्तिम रण।।
मत पकड़ो तुम विदेशी बैशाखी
देश नहीं है ये लंगड़ा
तेरे कारण अरुणाचल पर
देख हो गया हमला
तिब्बत तूने उनका माना
हमें कमजोर समझ, नामर्द समझ
अरूणाचल भी उसने अपना माना
उंगली पकड़ाई उसने पौंचा पकड़ा
पहले तिब्बत अब अरूणाचल
पर होता रहेगा यूं ही झगड़ा
अरूणाचल भी जाएगा
फिर कोई दरियादिल आएगा
किस्तों ही किस्तों में भारत
नक्शे से मिट जाएगा
इस देश की मिट्टी का न दो उनको कण
कह रहा है हर कण अब हो अन्तिम रण ।।
गलत निगाह उठी जो
उसको तुम फुड़वा दो
चीर हरण करे जो
उन हाथों को कटवा दो
अब न कर पाए कोई हमको तंग
समस्त विश्व को तुम दिखा दो
हम क्या हैं उनको बता दो
रखते हैं हम भी दम
कह रहा है कर कण अब हो अन्तिम रण ।।
विपिन बंसल
यह कविता मान्य अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल के समय की है।
UDtheFriend
06-Oct-2021 08:41 PM
बहुत सुंदर प्रस्तुति बंसल जी.....
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Vipin Bansal
06-Oct-2021 11:51 PM
आपका तहे दिल से आभार
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Zakirhusain Abbas Chougule
06-Oct-2021 04:58 PM
Nice
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Vipin Bansal
06-Oct-2021 07:16 PM
आपका तहे दिल से आभार
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Renu Singh"Radhe "
06-Oct-2021 04:50 PM
बहुत सुंदर रचना 🙏🙏
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Vipin Bansal
06-Oct-2021 11:51 PM
आपका तहे दिल से आभार
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Vipin Bansal
06-Oct-2021 11:59 PM
आपका तहे दिल से आभार
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