स्वैच्छिक विषय अर्श
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हैं फ़ूल तिरे माना पर ख़ार हमारे हैं,
मझधार मिले हैं हमको दूर किनारे हैं।
हर वक़्त उदासी से लबरेज़ हुए लम्हे,
मत पूछ तिरे बिन कैसे रोज़ गुज़ारे हैं।
है अर्श तिरा जगमग, है छत तिरी गुलाबी,
है चांद तिरा ख़ादिम, कुछ साथ सितारे हैं।
बेखौफ़ खिज़ा ने मेरा बाग किया काबू,
है साथ ख़ुशी तेरे, कुछ साथ बहारे हैं।
ले साथ तुझे दुनिया की सैर करा दूं क्या?
हैं रथ नहीं नभ के, पर ख़्वाब हमारे हैं।
Written by अभिलाज
kashish
18-Jul-2023 02:33 PM
बेहतरीन कविता
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ऋषभ दिव्येन्द्र
20-Jun-2023 05:17 PM
बेहतरीन लिखा आपने
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डॉ. रामबली मिश्र
20-Jun-2023 03:34 PM
👌👍🏼
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