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ससुर

बहू के कमरे से आती आवाज सुन कर ससुर कमल कान्त के पाँव जैसे जम गए। बहू कविता अपनी सहेली से कह रही थी हर हफ्ते यहाँ आ धमकते हैं जाने कितना दम है बूढ़ी हड्डियों में?? 

सहेली पूनम: किसलिए आते हैं??
बहू: पैसे लेने और किसलिए, न जाने कितना बड़ा 
पेट है जो भरता ही नहीं! हमारा भी तो खर्चा है हर हफ्ते कहाँ से दें??
पूनम: सासु माँ भी आई हैं??
बहू: नहीं! ससुर जी ही आते हैं। सासु माँ को आने की जरूरत ही नहीं पैसे ले जाकर उन्हीं के हाथों पर तो रखते होंगे!!
पूनम: बहुत गलत बात है अपनी मौज के लिए दूसरों की जरूरत को भी काटना।

कमल कांत को लगा कि वहीं गिर पड़ेगें। वे जल्दी से बैठक की तरफ वापस लौट गए। बहू के शब्द कान में पिघले शीशे की तरह पड़ रहे थे। बैठक में आकर वेदम पलंग पर गिर पड़े। सोचने लगे मैंने तो कभी भी एक रुपया इन से नहीं मांगा। बल्कि मैं तो इन पर खर्च करता हूँ। इनकी खुशी राजी देखने के लिए आ जाता हूँ। कोई दिक्कत तो नहीं लेकिन मेरे बारे में इस तरह की भावना!! मैं पैसे के लिए आता हूँ, मैं तो दिन-रात खर्च ही कर के यहाँ से जाता हूँ।
उनकी आँखों के सामने पत्नी सरोज की बातें घूमने लगीं। वे जव भी पत्नी से यहाँ आने के लिए कहते वे साफ मना कर देतीं मुझे नहीं जाना, तुम भी मत जाओ, क्या बार-बार वहाँ पहुँच जाते हो। 
अरे अपना घर है बेटे-बहू से मिल आता हूँ। तुम भी चलो, कभी तो चलो।
पत्नी सरोज: नहीं!
वे फिर भी बेटे के पास पहुँच जाते।
आज अपनी पत्नी की बातें याद आ रही थीं। उन्हें पछतावा था कि पत्नी की बात क्यों न सुनी।
वे भूल नहीं पा रहे हैं, कविता बहू की आवाज कानों में गूंज रही है कि बार-बार चले जाते हैं।  
भगवान की दया है कि हमें अपने खर्चे के लिए किसी से एक रुपया नहीं चाहिए, हमारा तो जीवन गुजारना दुश्वार हो जाता।
मैं इनसे पैसे क्या लूँगा, बल्कि जब भी आता हूँ दोनों थैलों में कुछ ना कुछ खाने पीने का एवं जरूरत का सामान भर के लाता हूँ, एक रुपया भी नहीं लेता, तब ऐसा अपमान, ऐसी भावनाएँ!!!अगर जरूरत वाला होता तो....???
मुझे तो इनसे सिवाय जिल्लत और तानों के कुछ भी न मिलता!!
विचारों के बवंडर में कब शाम हो गई पता ही न चला!!
बेटा काम पर से आ गया। चाय बनी। 
बहू चाय लेकर आई पिताजी चाय पी लीजिए।पिताजी ने कोई जवाब नहीं दिया। बहू चाय रख कर वापस आ गई। चाय पीकर थोड़ी देर बाद बेटा पिता से मिलने पहुँचा उसने देखा कि चाय रखी हुई है पिताजी सिर पर हाथ रखे हुए लेटे हैं। उसने आवाज दी पिताजी पिताजी आपने चाय नहीं ली क्या तबीयत ठीक नहीं। 
मैं चाय गरम कर के लाता हूँ आप चाय पी लीजिए। तबीयत खराब है तो मुझे बताइए मैं आपके लिए दवाई ले आता हूँ।
शब्दों के तीर से आहत पिताजी कुछ नहीं बोले। बेटा पिताजी का हाथ हटाकर उनकी तरफ देखता है, "क्या बात है पिताजी आपने चाय नहीं पी??"
पिताजी बोले, "नहीं बेटा इच्छा नहीं है जरूरत होगी तो मैं बता दूंगा तू जा आराम कर ले थका हुआ आया होगा। 
बेटा चला गया। पिताजी ने न चाय माँगी और न ही कोई इच्छा ज़ाहिर की। 
बेटा पिताजी को खाना खाने के लिए बुलाने आया, "चलिए पिताजी खाना खा लीजिए खाना तैयार है।" पिताजी बोले, "बेटा भूख नहीं है तुम लोग खा लो मैं बाद में भूख लगेगी तब खा लूंगा।" 
बेटे ने बहुत कहा, "पिताजी क्या बात है कुछ और खाना चाहते हैं तो बता दीजिए।" 
पिताजी: नहीं बेटा! "अभी भूख नहीं है।" 
ठीक है बेटा जाने लगा, "मेरा बैग यहां लाकर रख दे उसमें दवा है, मैं सोते वक्त ले लूंगा।" 
बेटा बोला, "आपने कुछ खाया नहीं है पहले कुछ खा लें फिर दवा लें। 
पिताजी बोले, "मैं खाना खा कर ही लूंगा, तुम मेरा सामान यहां रख दो।" 
सुबह बहू पिताजी के कमरे में चाय लेकर गई, उसने देखा वहां पिताजी नहीं है। पति से आकर बोली, "पिताजी बैठक में नहीं हैं, कहीं दिख भी नहीं रहे??" 
बेटा बोला, "यहीं-कहीं होंगे, कहाँ जाएंगे, मैं देखता हूं।" उसने छत पर इधर-उधर देखा लेकिन वे कहीं नहीं थे, "शायद बाहर घूमने गए होंगे!" 
सुबह के 10 :00 गए पिता नहीं लौटे।
बेटे ने फोन लगाया पिता ने फोन नहीं उठाया।
बार-बार फोन लगाया तब कहीं पिता ने फोन उठाया। 
"आप कहां हैं पिताजी??" "मैं कब से आपको ढूंढ रहा हूं लेकिन आप कहीं नजर नहीं आ रहे बताइए ना कहां है आप??"
पिता ने कहा, "मैं बस में हूँ बेटा वापस जा रहा हूं।"
बेटा: "आप बिना बताए चले गए मैं आपको बस तक छोड़ता, बस में बिठा देता।"
पिता: मैं घर से जल्दी निकला था इसलिए तुम्हारी नींद में खलल नहीं डाली।" इतना कहकर कमल कान्त ने फोन रख दिया।
बेटा परेशान हो गया आखिर पिताजी ने कल से कुछ नहीं खाया, चाय नहीं पी, खाना नहीं खाया, सुबह बिना बताए चुपके से चले गए। आखिर ऐसा क्या हुआ?? 
उसने पत्नी कविता से पूछा, "तुमने पिताजी से कुछ कहा क्या?? 
कविता ने कहा, "मैंने तो कुछ नहीं कहा।" 
बेटा सोचने लगा कोई तो बात है पिताजी बिना कुछ बोले ही चले गए। 
बेटा पत्नी से बोला, "मुझे पिताजी से मिलने जाना चाहिए आखिर क्या बात है, बिना मिले ही चले गए??" 
पत्नी बोली, अरे! अगले हफ्ते फिर आएंगे क्यों इतना परेशान हो रहे हो, जब आएंगे तब बातचीत कर लेना।" 
कमल कांत ने वापस आकर अपनी पत्नी को इस बारे में कुछ नहीं बताया। 
पत्नी ने पूछा, "आप तो सुबह-सुबह इतनी जल्दी आ गए क्या बात है??" 
कमल कांत: "कुछ नहीं बस ऐसे ही, मुझे तुम्हारी याद आ रही थी।" 
अच्छा! कहकर पत्नी हंसती हुई किचन में चली और चाय बनाकर ले आई।
कमल कांत बहू की बातें दिमाग से निकाल नहीं पा रही थे किन्तु पत्नी को कुछ नहीं बताया। 
उन्होंने बेटे के यहाँ जाने का कोई उत्साह भी नहीं दिखाया और ना ही अपने बेटे से मिलने गए। 
तब भी पत्नी ने कुछ नहीं पूछा सोचा जाने की इच्छा नहीं होगी, लेकिन उन्होंने उनके चेहरे पर उदासी महसूस की। मन में सोचा कुछ बात तो है, 
लेकिन वे चाहती थी कि वे (कमल कान्त) उन्हें खुद से बताएं।
अगले हफ्ते पिताजी नहीं आए। 
बेटे ने फोन किया, पिताजी आप कितनी देर में आ रहे हैं?? मैं आपको बस स्टैंड से ले लूंगा।"
पिता ने कहा, "मैं नहीं आ रहा हूँ मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं है।" कहकर फोन रख दिया।
बेटे का माथा ठनका। उसने शाम को ही बस पकड़ी
और पत्नी सहित पिता के पास पहुँच गया।
बेटे-बहू को देखकर सरोज को हैरानी नहीं हुई।
क्योंकि कुछ हुआ है, इसका अंदेशा उन्हें पहले से ही था।
बेटे ने पिता से पूछा, "बताइए क्या बात है??"
पिता हंसकर बोले, "कोई बात नहीं है, तुम्हें ऐसा क्यों लग रहा है कि कोई बात है, जबकि कोई बात है ही नहीं।"
बेटा: "आपको मेरी कसम है बताइए पिताजी!"
पिता: "ठीक है तुमने कसम दी है तो बताता हूँ।"
पिता ने बहू कविता और उसकी सहेली के बीच की बातचीत बेटे के समक्ष रख दी।
मैं तुमसे अबतक कितने पैसे ले चुका हूँ, बहू को हिसाब बता दो और मुझे भी ताकि मैं तुम्हारी रकम लौटा दूँ।
बेटे बहू दोनों की नज़रें झुक गईं और माफी मांगने लगे।
पिता व्यंग्य से हंसकर बोले, "बहू की गलती नहीं है रोज-रोज किसी की गृहस्थी में जा धमकूंगा तो कोई 
तो वजह होगी??"
बेटा: "किसी की गृहस्थी नहीं, आपके घर की, एक बार तो माफ कर दीजिए।"
पिता: "मैंने माफ किया जाओ खुश रहो। अरे! मैं तो तुम दोनों की गलती मान ही नहीं रहा हूँ।" 
"गलती मेरी है मैंने सरोज की बात नहीं सुनी, मैं जब भी जाता वह मुझे हर बार मना करती, मुझे आईना दिखाना बहुत जरूरी था ये काम बहू ने कर दिया, इसमें बुरा क्या है?"
"लेकिन बेटा एक बात बहुत अच्छी हुई मैं बहुत खुश हूँ। वो ये कि रात-दिन मेरे दिमाग में एक ही विचार चलता था कि जैसे ही तुम्हारे घर औलाद होगी मैं सरोज को किसी भी तरह मना लूंगा और यहाँ का सब कुछ बेचकर तेरे बच्चे के साथ खेलते हुए अंतिम सफर पर निकल जाएंगे।"
"मैं बहू का एहसास मंद हूँ वक्त रहते मेरी आँखें खोल दीं वर्ना हम तो अपमान और जलालत झेलते हुए मौत से पहले ही मर जाते।"
मुझे बहू ने बहुत अच्छे से समझा दिया है कि 
"औलाद के लिए माता-पिता का घर हमेशा रहता है किन्तु औलाद का घर माता-पिता का कभी नहीं होता, उनके लिए वहाँ ताने और बेइज्जती के सिवा कुछ नहीं है।"
अब मैं तुम्हारे घर पर चक्कर नहीं लगाऊंगा मेरी भावनाएं बहुत आहत हुई हैं, मैंने ऐसा कभी सोचा ही नहीं था जो मेरे सामने आया तुम अपने घर जाओ और अपनी दुनिया में खुश रहो।
दोनों दुखी मन से अपना सा मुँह लेकर लौट आए!!

स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान) 

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6 Comments

Punam verma

23-Jun-2023 09:16 AM

Very nice

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Abhinav ji

23-Jun-2023 07:38 AM

Very nice 👍

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Madhumita

23-Jun-2023 12:52 AM

Nice ☺️

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