अहम
अहम
अहम का देखो बहम बड़ा है,
इसके आगे कोई ना खड़ा है।
बड़े-बड़े राजा महाराजा,
सिंहासन हो ताजो वाला।
रावण और कंस का अहम,
देखो भला क्या सफल हुआ है।
अहम से देखो रहे बिखरते।
हालातों से नहीं बदलते।
अहम की लताएं जब पनपती,
क्रोध की जड मजबूत करती।
अपनी आगे कुछ ना समझती,
बात सदा अपनी ही करती।
निर्माण तरक्की का रुक जाता,
अहम सदा फिर आडे आता,
बुद्धि पर ताला पड़ जाता।
चारों ओर मैं ही मैं भाता
अहम का हाला जब भर जाता
विवेक भी संग में पी जाता।
गरुर सर चढ़कर है बोले,
अहम से भला हुआ कब किसका,
और लोगों को भी ले डूबे।
मैं मेरे से मिट गई दुनिया,
अहम का बहम जब भी छुट्टे।
बाद में देखो कुछ ना सूझे।
रचनाकार ✍️
मधु अरोरा
Radhika
23-Jun-2023 06:58 PM
Nice
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Natasha
23-Jun-2023 06:49 PM
Nice
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वानी
23-Jun-2023 06:38 PM
Nice
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