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रिश्ता

कृष्णा की प्रिय बाँसुरी, जब अधर से लगाते हैं। 

झूम उठती सकल दुनिया, कान्हा जब मुस्काते हैं।

तिमिर चीरता सूरज ये, देता जीवन धरती को।
आतप फैले बगिया में, वृक्ष छाया बन जाते है।

शशि ने पाई शीतलता, हिमकर कर देता सबको।
जड़ी सितारों से चादर, क्षिति को नभ पहनाते है।

बारिश बूँदों की छम-छम, मेघ धरा को छूते है।
महकती सौंधी सी मिट्टी, मयूर पांख हिलाते हैं।

मेंहदी रचती दुल्हन की, सुर्ख हथेली हो जाए।
देखकर मुस्काए बेटी, घर-आंगन बतियाते हैं।

आंगन तुलसी का पौधा, गूंज रहा पूजा वंदन।
हर दिन हो संध्या वाती, दोष दूर हो जाते हैं।

पेड़ का अमृत पानी है, तरुवर सांसे मानव की,
हम दोनों का रिश्ता भी, सातों जन्म निभाते हैं।

स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान) 

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7 Comments

Abhinav ji

28-Jun-2023 08:13 AM

Very nice 👍

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Punam verma

28-Jun-2023 08:06 AM

Very nice

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सुन्दर सृजन

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