द गर्ल इन रूम 105
सकता हूँ? आप सभी ने इस दुख को सहा है और आज भी सह रहे हैं। अब हम कभी पहले जैसे नहीं हो सकेंगे।" फ़ैज़ अब भी अपने फोन पर ही लगा हुआ था। रघु रुका और आंसुओं को रोकने की कोशिश करने लगा।
ज़ारा की एक कज़न ने उसे पानी का गिलास दिया। रघु ने एक घूंट पिया और वापस से बोलना शुरू किया- "मैं अपनी पूरी जिंदगी में इतने उदार, सकारात्मक, दिलदार, रहमदिल और प्यार करने वाले किसी और शख्स से नहीं मिला, जैसी जारा थी। वो मेरे साथ होने वाली सबसे अच्छी घटना थी। मैंने अपनी जिंदगी में जो कुछ भी किया है, उसके दिए हौसले की बदौलत ही कर पाया हूं। मुझे नहीं लगता मैं अपनी जिंदगी में अब किसी और के साथ कभी वैसा महसूस कर पाऊंगा, जैसा उसके साथ करता था। वो जहां भी है, मैं उसे इतना ही कहना चाहता हूं कि मैं तुम्हारा शुक्रिया अदा करना चाहता हूं। तमाम यादों और उन तमाम बातों के लिए, जो मैंने तुमसे
सीखी हैं। मे गॉड ब्लेस योर सोल।' रघु ने अपनी स्पीच ख़त्म कर दी, लेकिन वहीं खड़ा रहा। आंखें बंद किए, दुख में डूबा हुआ। सनम उसके पास गई और उसके कंधे पर हाथ रखकर धीरे-धीरे उसे अपनी सीट पर ले आई।
कुछ और नाते-रिश्तेदारों के बोलने के बाद मौलवी ने दुआ की। यह प्रेयर मीट का समापन था। लोग जाने से पहले सफ़दर के पास एक बार फिर दुख जताने आए।
शाम सात बजे तक बहुत कम लोग रह गए थे। फैज़ आया और सफ़दर को गले लगा लिया। 'अंकल, अब मुझे जाना होगा, ' फैज़ ने कहा।
"नहीं, तुम इतनी दूर से आए हो, खाना खाकर ही जाना, सफदर ने कहा। 'अंकल, मैंने आपको बताया था कि हमारी एन्युअल एक्सरसाइज़ चल रही हैं। मेरे सीनियर ऑफिसर ने "हां, लेकिन फ़्लाइट तो कल है ना...'
मुझे एक केवल एक दिन की छुट्टी दी है। और वो भी इस ख़ास मौके के लिए।'
पर मुझे घर भी जाना है, और इधर मेरे सीनियर ऑफ़िसर मैसेज पर मैसेज किए जा रहे हैं।' सफ़दर को जैसे ठेस पहुंची हो। उन्होंने कहा, 'तो क्या ये घर नहीं है? मुझे यह अहसास तो करने दो कि मैं आज भी अपने बच्चों के साथ डिनर कर सकता हूं।' फिर वे रघु की ओर मुड़े। 'रघु, प्लीज़ तुम भी डिनर के लिए
रुकना।'
'जी, अंकल, रघु ने विनम्रता से कहा।
'केशव, सौरभ, तुम भी सनम, अपने दोस्तों को रुकने को बोलो। तुम लड़कियां डिनर पर जैनब
देना।
सनम ने सिर हिलाकर हामी भर दी। लड़को, आओ, आज हम साथ बैठकर खाना खाएंगे, ' सफ़दर ने कहा।
सफ़दर लोन का डायनिंग रूम मुझे हमेशा ही इम्प्रेस करता था। उनकी आलीशान 18 सीटर मेज़ पर आज केवल पांच मेहमान थे। सफ़दर हमेशा की तरह मुखिया की कुर्सी पर बैठे। उनके बाईं तरफ़ रघु और फ़ैज़ और दाई तरफ सौरभ और मैं बैठे थे।
मैं अपना फ़ोन गोद में लिए बैठा रहा। मैंने इंस्पेक्टर राणा को एक मैसेज डाल दिया। 'क्या आप तैयार हैं?'
"बिलकुल । लेकिन क्या तुम मुझे बताओगे कि हो क्या रहा है? उन्होंने कहा। मैंने राणा को एक अर्जेंट
सिचुएशन के लिए स्टैंडबाय पर रहने को कहा था। "आप वेस्टएंड ग्रीन्स से कितनी दूर हैं?" 'मैं हौज़ खास में हूं। यानी शायद चालीस मिनट।'