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ईद

बहुत पुरानी बात है। 22-23 वर्षीय युवक मजीद अपने चार दोस्तों के साथ भारत भ्रमण पर निकला। घूमते-घूमते वे चारों बंगाल पहुंच गए। वहाँ उनकी मुलाकात एक तांत्रिक से हुई। तांत्रिक ने उन्हें तरह-तरह के चमत्कार दिखाए।

चमत्कार देखकर मजीद इतना प्रभावित हुआ कि उसने तांत्रिक से तालीम लेने की तमन्ना जाहिर की। तांत्रिक थोड़ी ना-नुकुर के बाद मान गया। मजीद के दोस्तों ने उसे वापस चलने के लिए बहुत समझाया किन्तु वह न माना। दोस्त वापस लौट आए।

मजीद तीन साल तक तांत्रिक से तंत्र की तालीम लेता रहा उसने तांत्रिक से बहुत से चमत्कार सीख लिए। उसकी सीखी हुई एक तालीम जिसमें उसे बहुत मजा आता, उसी का इस्तेमाल वह अक्सर करता रहता। 
उसने तांत्रिक से इजाजत ली और अपने घर लौट आया। खानदान और दोस्त उसे देखकर बहुत खुश हुए। दोस्तों के साथ घूमना-फिरना, मौज-मस्ती फिर शुरू हो गई। वह उन्हें तांत्रिक के चमत्कार दिखाता रहता।
उसके चमत्कार देखकर सब खुश होते। उसे भी बहुत अच्छा लगता। 
उसकी तालीम से प्रभावित होकर एक लड़की रेशमा उसकी जिन्दगी में आई। दोनों की मुलाकातें बढ़ने लगीं। मजीद कुछ कमाता-धमाता तो था नहीं। तांत्रिक चमत्कार से जिंदगी नहीं चलती। 
रेश्मा के माता-पिता ने रेश्मा का रिश्ता मजीद के दोस्त ताहिर के साथ तय कर दिया। रेश्मा ने भी मजीद से मिलना-जुलना छोड़ दिया। मजीद को बहुत बुरा लगा लेकिन वह करे तो क्या करे। 
वह ताहिर से सख्त नफरत करने लगा। 
बदला लेने का मौका तलाश करने लगा। मजीद ने बहुत सोचा कि कैसे ताहिर से बदला लूं किन्तु उसके दिमाग में कोई विचार नहीं आया।
वह गांव से बाहर वीरान जगह पर इन्हीं ख्यालों में गुम था कि ताहिर को कैसे सबक सिखाऊँ??
तभी अचानक दौड़ता हुआ एक बकरा मजीद के पास आ गया, उसके पीछे-पीछे दौड़ता हुआ ताहिर आ गया, आकर उसने बकरे की रस्सी पकड़ ली।
दोनों दोस्तों में थोड़ी देर बात हुई, मजीद ने ताहिर के होने वाले निकाह के लिए खुशी जाहिर की।
ताहिर मजीद को शुक्रिया दोस्त कहकर चला गया।
उसके जाते ही मजीद के भेजे में ख्याल कौंध गया, उसका दिमाग साजिश रचने लगा। 
ईद का चांद देखा जा चुका था। तीसरे दिन बकरीद थी। मजीद ने साजिश को अंजाम देने का
खाका तैयार कर लिया वह ताहिर से निजात चाहता था। इसलिए ताहिर पर नज़र रखने लगा। 
मस्जिद में नमाज अदा हुई उसके बाद कुर्बानी देने की तैयारी शुरू हूई।
मजीद ने देखा ताहिर कुर्बानी का बकरा लेकर जा रहा है। उसने तांत्रिक विद्या से ताहिर को बकरा बना दिया। मजीद चाहता था कि ताहिर की कुर्बानी बकरा समझ के दे दी जाए। रेशमा भी आजाद हो जाएगी। हम शादी कर लेगें। किन्तु गलत इरादों में खुदा भी साथ नहीं देता। 
दो बकरे लावारिस बिना किसी आका के इधर-उधर भटकते दिखाई दिए। लोगों की नज़र पड़ी, उनके साथ कोई मालिक न दिखा तो दोनों बकरों को मस्जिद की तरफ़ ले गए। मस्जिद के दरवाजे पर पहुँचते ही, खुदा के करम से बकरा बना ताहिर असली रूप में आ गया।
ऐसा होते देख लोगों को बड़ा ताज्जुब हुआ। लोग समझ गए कि ये मजीद की करतूत है।
सब इकट्ठा होकर मजीद के घर पहुँचे और उससे जबाव तलब करने लगे। मजीद ने कोई जबाव नहीं दिया वह चुप बैठा मन ही मन सोचता रहा कि उसकी साजिश नाकाम हो गई। उसका तंत्र काम नहीं आया। 
मजीद के वालिद लोगों से माफी मांगते रहे कि इस बार गलती माफ करदो, आगे अगर कुछ किया तो मैं इससे सारे ताल्लुकात खत्म करके पुलिस के हवाले कर दूंगा।
लोग बड़बड़ाते हुए अपनी राह चले गए। ताहिर के लिए सच्चे मायने में ईद मुबारक रही, उसने हमेशा के लिए मजीद से दोस्ती तोड़ ली।
खुदा बड़ा निगहबान है सब पर नज़रे करम बनाए रखता है।

स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान) 


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5 Comments

Abhinav ji

30-Jun-2023 08:51 AM

Very nice 👍

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Mohammed urooj khan

30-Jun-2023 04:33 AM

वाह शानदार कहानी 👌👌👌

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Mukesh Duhan

29-Jun-2023 09:07 PM

Nice ji

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