हाफ गर्लफ्रेंड
अध्याय 1
दिल्ली
1
"कहाँ पर?' मैंने हाँफते हुए पूछा।
इंटरव्यू शुरू होने में दो मिनट का वक्त बाकी था और मुझे अपना रूम नहीं मिल रहा था। सेंट स्टीफेंस कॉलेज के भूलभुलैयानुमा गलियारों में भटकते हुए मुझे जो मिलता, मैं उसी से रास्ता पूछने लगता। बहुत से स्टूडेंट्स ने मुझे इग्रोर कर दिया। कुछ तो मुझे देखकर खी खी कर हँसने लगे। पता नहीं क्यों
बेल, अब मुझे पता चला क्यों मेरा लहजा । साल 2004 में मेरी इंग्लिश बिहारीनुमा हुआ करती थी। उसे
इंग्लिश नहीं कहा जा सकता था। वह तो नब्बे फीसदी बिहारी हिंदी मिक्स थी, जिसमें दस फीसदी खराब इंग्लिश
मिक्स कर दी गई थी। मिसाल के तौर पर, मैं इन शब्दों में अपने रूम का पता पूछ रहा था 'कम्टी रूम.....
बतलाइएगा जरा? हमारा इंटरव्यू है ना वहाँ.. मेरा खेल का कोटा है... किस तरफ है?
"व्हेयर यू क्रॉम, मैन?" एक लड़के ने पूछा, जिसके बाल बहुतेरी लड़कियों से भी लंबे होंगे।
"मी माधव झा फ्रॉम सिमरांव बिहार।' उसके दोस्त हँस पड़े। यह तो मुझे बाद में पता चला कि लोग अफसर इस तरह के प्रश्न पूछते हैं, जिन्हें वे
'रिटेरिकल वेश्वन' कहते हैं यानी एक ऐसा सवाल जिसे वे महज कुछ साबित करने के लिए पूछते हैं, कोई जवाब पाने
के लिए नहीं। यहाँ उसके इस सवाल का मतलब यह साबित करना था कि मैं उन लोगों के बीच एलियन था। 'तुम किस चीज के लिए इंटरव्यू देने आए हो? पियून के लिए लंबे बालों वाले लड़के ने कहा और हँस दिया। • मुझे तब इतनी इंग्लिश भी नहीं आती थी कि मैं उसकी इस बात को समझकर उसका बुरा मान सकूँ। फिर मैं
जल्दी में भी था। आपको पता है रूम कहाँ है?" मैंने उसके दोस्तों की ओर एक नजर डालते हुए पूछा। वे सभी
अमीरजादे, इंग्लिश टाइप्स लग रहे थे। छोटे कूद के एक थुलथुल लड़के को शायद मुझ पर तरस आ गया और उसने
कहा 'मेन रेड बिल्डिंग के कॉर्नर से लेफ्ट में चले जाओ तो तुम्हें कमेटी रूम का साइन नजर आ जाएगा।'
'थैंक यू ' मैंने कहा। कम से कम मुझे इंग्लिश में इतना तो ठीक से कहना आता ही था। "साइन बोर्ड इंग्लिश में लिखा होगा। तुम उसे पढ़ सकोगे?" लंबे बालों वाले लड़के ने फिर कहा।
वह मेरी जिंदगी का पहला इंटरव्यू था। तीन बुजुर्ग मेरे सामने बैठे थे। उन्हें देखकर लगता था कि जिस दिन से उनके बाल सफेद होना शुरू हुए तब से वे मुस्कराए नहीं थे।
मैं यह सीखकर आया था कि इंटरव्यू से पहले इंटरव्यू लेने वालों को विश करना चाहिए। मैंने इसकी बाकायदा प्रैक्टिस भी की थी। 'गुड मॉर्निंग, सररा'
"यहाँ एक से ज्यादा लोग हैं, बीच में बैठे एक सज्जन ने कहा। वे कोई पचपन साल के होंगे और उन्होंने काली चौकोर फ्रेम का चश्मा और चेक्ड जैकेट पहन रखी थी।
गुड मोर्निंग, सर सर एंड सर, ' मैंने कहा। मुस्करा दिए। मुझे लगा कि वह कोई बहुत नेक किस्म की मुस्कराहट नहीं है। वह एक हाई-क्लास-टू-लो-
क्लास स्माइल थी। सुपीरियरिटी की स्माइल इस बात की स्माइल कि उन्हें इंग्लिश आती थी और मुझे नहीं आती थी। जाहिर है, मेरे पास सिवाय इसके कोई और चारा न था कि जवाब में मैं भी मुस्करा दूँ।
बीच में बैठे हुए सज्जन प्रो. परेरा थे, सोशियोलॉजी के हेड, जिसके लिए मैंने अप्लाय किया था। फिजिक्स पड़ाने वाले प्रो. फर्नांडीस और इंग्लिश पढ़ाने वाले प्रो. गुसा उनके बाएँ और दाएँ बैठे थे।