हाफ गर्लफ्रेंड
'माईसेल्फ माधव झा।'
यह मेरा रटा-रटाया जवाब था। यह तो मुझे बाद में पता चला कि इस तरह के वाक्य बोलने वालों को लो- क्लास माना जाता है। हम पहले हिंदी में सोचते हैं और फिर शब्द-दर-शब्द उसको इंग्लिश में ट्रांसलेट कर देते हैं। 'फ्रॉम बिहार उसने कहा और हँस पड़ी। 'राइट'
वह इसलिए नहीं हंसी थी कि में बिहारी था। वह इसलिए हंसी थी, क्योंकि पीयूष पहले ही इस तथ्य का
खुलासा कर चुके थे। उसकी आवाज में कोई जजमेंट नहीं था। अब में उसे और ज्यादा पसंद करने लगा था।
"येस यू?"
'फ्रॉम देल्ही इटसेल्फ मैं उससे बातचीत जारी रखना चाहता था। मैं उसका पूरा नाम और पुश्तैनी मुकाम के बारे में जानना था।
सिमराँव में इसी तरह से एक-दूसरे को अपना परिचय देते हैं। लेकिन मुझे पता नहीं था कि इंग्लिश में इसे कैसे पूछा जाए। आखिर यह लड़कियों को इंप्रेस करने की भाषा जो है। फिर चंद मिनटों में मेरा सिलेक्शन ट्रायल शुरू होने वाला था। कोच ने सीटी बजा दी।
"अब मेरे ट्रायल्स हैं। आप देखेंगी?" 'ओके' उसने कहा।
मैं चेंजिंग रूम की ओर दौड़ा दौड़ा नहीं बल्कि उत्साह में फुदकते हुए चेंजिंग रूम की ओर बढ़ा। जल्द ही मैं
कोर्ट पर था। पीयूष ने खेल की शुरुआत की। मैं अच्छा खेला। मैं शेखी नहीं बधारना चाहता, लेकिन मैं कॉलेज टीम के किसी भी खिलाड़ी से बेहतर खेला। "बास्केट' अपना पाँचवा शॉट दागने के बाद मैं चिल्लाया। लोग तालियाँ बजाने लगे। मैंने इधर-उधर देखा।
यह एक बेंच पर बैठी एक बॉटल से पानी की चुस्कियाँ ले रही थी। उसने भी ताली बजाई।
मेरा गेम अच्छा रहा, लेकिन उसकी मौजूदगी की वजह से मैं और बेहतर खेल पाया था। स्कोर इंच-दर-इंच आगे बढ़ता रहा। मैंने थोड़ा और जोर लगाया और कुछ और बास्केट्स स्कोर की जब मैंने एक टफ शॉट लिया तो सीनियर्स ने मेरी पीठ थपथपाई पीयूष ने फाइनल व्हिसल बजाई। स्कोर था 25-281 हमने
बाजी जीत ली थी। चंद नौजवान लड़कों ने सेंट स्टीफेंस की टीम को हरा दिया था।
मेरा पूरा शरीर पसीने में नहा रहा था। मुझे लग रहा था जैसे मेरे शरीर में अब दम बाकी नहीं रह गया है। मैं
हांफ रहा था। पीयूष ने मेरी पीठ थपथपाई। वे कोर्ट के बीच तक मेरे लिए दौड़ते हुए आए थे। तुमने 28 में से 17 स्कोर किए। वेल डन, बिहारी, उन्होंने कहा और पसीने में लथपथ मेरे बालों पर अंगुलियाँ घुमाई में कोर्ट से बाहर निकला और रिया की ओर बढ़ने लगा।
'बाँव, यू रियली आर गुड उसने कहा थैंक्स, मैंने कहा। मैं अब भी हॉफ रहा था।
"एनीवे आई है टुगो उसने कहा और अपना हाथ बड़ा दिया। नाइस मीटिंग यू. बाय।' 'बाय, मैंने कहा मेरा दिल बैठ रहा था। मेरा दिमाग जानता था कि यह कहानी इसी तरह खत्म होगी, लेकिन
मेरा दिल उसे कबूल करने को तैयार नहीं था।
'अगर हम लकी साबित हुए उसने कहा और मुस्करा दी, और यहाँ की हायर पॉवर्स ने इजाजत दी तो फिर
मिलेंगे।'
'कौन जाने, मैंने कहा।
'येस, बट अगर ऐसा हुआ, देन सी यु। नहीं तो बाय।
"
वह जाने लगी। मैंने रियलाइज किया कि मुझे उसका पूरा नाम भी नहीं पता था। जैसे-जैसे वह मुझसे दूर होती जा रही थी. मैं सेंट स्टीफेंस में एडमिशन लेने से ज्यादा कुछ और नहीं चाहने लगा था। मैं बास्केटबॉल कोर्ट के बीचोबीच अकेला खड़ा था। सभी जा चुके थे। मैंने देखा कि मेरे इर्द-गिर्द केवल ईंटों के
रंग की इमारत और हरियाली है।
क्या यही जगह मेरे नसीब में लिखी है?" में सोचने लगा। वेल, सवाल केवल मेरे नसीब का नहीं था, सवाल अब हमारे नसीब का था। यही वजह थी कि एक महीने बाद सिमरॉव में मेरे घर में एक पोस्टमैन आया, जिसके पास सेंट स्टीफेंस कॉलेज