डाकिया
घट गई दूरियां
और बदल गया जमाना।
बिछड़ गए खत पुराने
भूल गए डाक खाना।
गए वो जमाने जब खतो से खुशबू आती थी।
दरवाजे में बैठी मां डाकिए को बुलाती थी।
खतों से प्रेम झलकता था।
मिलो की दूरियां मिट जाती थी।
मिलो दूर के बच्चों को
खत से मां बुलाती थी।
दर्द हो या खुशियां खत से बाटे जाते थे ।
खतो के जरिए बतियाते
अपने आते जाते थे।
सरहद पे बैठे वीर को
जब घर की याद सताती थी।
डाकिए के जरिए मिलते खत
जिनमे मिट्टी की खुशबू आती थी।
होली दिवाली का रंग
खतों पे आ छलकता था।
डाकिए को देखकर हर कोई मचलता था।
वक्त बिता बात रह गई।
गया जमाना खतो का
बस याद रह गई।
दुनिया सिमट गई मोबाइल में
जेबों में रिश्ते नाते है।
डाकिए की कोई फिक्र नहीं।
सब पुरानी बाते है।
सब पुरानी बाते है।
# लिखे जो खत तुझे
rv.lawyer@gmail.com
उदय बीर सिंह
08-Oct-2021 11:04 PM
हृदय स्पर्शी पंक्तियाँ
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Swati chourasia
08-Oct-2021 07:18 PM
Very beautiful 👌👌
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Niraj Pandey
08-Oct-2021 06:22 PM
वाह बहुत खूब👌👌
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