कृष्ण
त्रिपदी
कृष्ण
सदा प्रेयसी तुम्हें बुलाती
नित्य प्रीति के गीत सुनाती
भजन कृष्ण के मन से गाती।
घन बनकर तुम बरसो प्रियवर
शुष्क धरा अब ताके अंबर
प्रेम-सुधा से भर दो उर-घर।
प्रीति तुम्हारी लगती कंचन
तुमसे जुड़ा युगों का बंधन
करती हरक्षण प्रभु का वंदन।
हे माधव अब तो आ जाओ
प्यासे मन की तृषा मिटाओ
मुरली की धुन आज सुनाओ।
अंक -पाश में चाहूँ सोना
प्रेम फसल हिय में तुम बोना
दीप्तिमान तुमसे हर कोना।
प्रीति चौधरी"मनोरमा"
जनपद बुलंदशहर
उत्तरप्रदेश
मौलिक एवं अप्रकाशित।
Shashank मणि Yadava 'सनम'
05-Jul-2023 07:31 AM
खूबसूरत भाव और अभिव्यक्ति
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Reena yadav
04-Jul-2023 03:58 PM
👍👍
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सीताराम साहू 'निर्मल'
04-Jul-2023 01:29 PM
शानदार
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