संघर्ष
साल 1919
बाहर तेज़ तूफान के साथ तेज बारिश, और घनघोर अंधेरा साथ ही अंदर उमड़ता सैलाब दोनों ही अंजाम पाने को बेकरार दिख रहे थे।
रह रह कर कड़कती बिजली की रोशनी में सुनसान सड़क पर एक साया चलता हुआ तेजी से जा रहा था।
घंटा घर की घड़ी में रात दो बजे के घंटे की तेज़ आवाज़ उसकी चाल को और तेज़ कर देती है।
उस तूफानी रात में शहर की बिजली कटी हुई थी ।अनाथालय की बिल्डिंग में लालटेन जल रही थी , उस रोशनी में बड़े बड़े अक्षर में लिखा सेठ मुरलीधर अनाथालय धुंधले अक्षरों में दिखाई दे रहा था।सही मंजिल देख वो साया रुकता है आसपास देखा तो पहरेदार गायब था ,शायद उसे भी उम्मीद न होगी कि कोई इस तूफानी रात में भी आ सकता है।वो वहीं पालने में अपने सीने से लिपटे बच्चे को डालती है , बैग में से कपड़े निकाल उसे कपड़े पहनाती है फिर एक मोटा कपड़ा उसके ऊपर डालती है ,बच्चा जो अब तक भींगने के कारण कांप रहा था अब शायद उसे अच्छा महसूस हो रहा होगा ।
वो बैग रख कर वापस जाने को मुड़ती है, तभी बच्चे के नन्हे हाथ उसके दुपट्टे से उलझे उसे मानो छोड़ कर न जाने को कह रहे हों।वो जल्दी से दुपट्टा उसके हाथों से छुड़ाती है और एक नज़र जी भर देख आगे बढ़ने लगती है ।बच्चा जोर जोर से रोने लगता है।उसके कदम थम जाते हैं वो उसे पालने से उठाती है और बच्चा चुप हो जाता है,वो उसे चूमती है और एक अंतिम बार अपना दूध पिलाती है ,बच्चा सो जाता है ।महिला के चेहरे पर असीम संतोष दिखता है धीरे से वो बच्चे को पालने में लिटा ,अनाथालय की घंटी बजा कर वहीं दीवार की ओट में छुप जाती है।
घंटी की आवाज़ सुन भीतर से एक महिला बाहर लालटेन लेकर बड़बड़ाती हुई बाहर आती है ,और बच्चे को पालने में सोता देख ,इधर उधर देखती है,किसी को न देख वो अंदर जाकर और लोगों को सूचित करती है।कई औरतें आकर बच्चे के पास कुछ बातें करती हैं,शायद वो उस निर्मम मां को गालियां दे रही होंगी जिसमें इस तूफानी रात में अपने कलेजे के टुकड़े को अलग करने की हिम्मत होगी।बादलों की गरज और बिजली की कड़क से सब कुछ अस्पष्ट सुनाई दे रहा था हरप्रीत को।
हरप्रीत कोने से निकल कर अंधेरे में गायब हो गई।
उधर शोरगुल सुन बच्चा जाग गया।वार्डन ने सहायिका सुरजीत को बच्चे को उठा कर अंदर ले चलने का इशारा किया।
उसने बैग खोला उसमें दूध की बोतल ,कुछ कपड़े और एक चिट्ठी थी।
उसने अधीक्षिका को पत्र सौंपा और बच्चे को गोद में लेकर टहलाने लगी इस उम्मीद से कि अगर नींद आयेगी तो सो जायेगा।
अधीक्षिका अपने कमरे में जाकर कुर्सी पर बैठी ही थी कि बिजली आ गई। बाहर का मौसम भी अब सही हो गया था,हल्की रिमझिम बारिश हो रही थी।
चिट्ठी में लिखा था" अगर मैं जिंदा रही तो लौट कर आऊंगी।"जोगिंदर नाम रखियेगा दीदी मेरे पुतर का ।
एक बदनसीब मां।
आप सभी पाठक सोच रहे होंगे कि कैसी मां है जो अपने बच्चे को यूं रात में छोड़ कर गायब हो गई। मेरा दिल ज़ार ज़ार कर रो रहा है,लेकिन मेरे पास कोई रास्ता नहीं बचा।
मेरा नाम है ,हरप्रीत।देश के लोग अंग्रेजों के जुल्म सितम के खिलाफ आवाज़ उठाने लगे थे।उनका पुरजोर विरोध हो रहा था।
मैं पंजाब के एक छोटे पिंड में रहती थी ।मुझे अपने माता पिता नहीं याद है ,जब से होश संभाला खुद को अनाथ ही पाया। पड़ोस में रमा दीदी बच्चों को मुफ्त में पढ़ाया करती थीं।मैं उनके पास ही रहती थी और उनका छोटा मोटा काम निपटाया करती थी।
धीरे धीरे मैं ये समझने लगी कि दीदी कुछ और ही काम करती है ।वो बच्चों को तो पढ़ाती हैं साथ में क्रांतिकारी गतिविधियों से भी जुड़ी हुई थीं।वो क्रांतिकारियों के लिए खबर लाती थी एक वाक्य में कहें तो वे क्रांतिकारियों के बीच कड़ी भी थी।
उनके साथ रहते रहते मेरे अंदर भी देश के लिए कुछ कर गुजरने का जुनून भरता जा रहा था। आखिर एक दिन मैने दीदी से अपने लायक काम पूछा।
दीदी ने मुझे पोस्टर चिपकाने का काम दिया। मैं अंग्रेजों से नज़र बचा शहर में पोस्टर लगा देती।
इसी क्रम में मेरा दीदी ने कई नामी क्रांतिकारियों से परिचय कराया। मुझे गदर पार्टी के बड़े बड़े नेताओं से भी मिलने का मौका मिला।मुझे एक बार हथियार लाने का काम सौंपा गया।मैं पिंड से दूर बसे एक ट्यूबेल वाले घर पर गई वहीं से मुझे हथियार लाना था।वहीं मेरी मुलाकात बलविंदर से हुई । गज़ब का जोश था उसमें।हमारा मिलना जुलना हथियार के सिलसिले में अक्सर ही होने लगा।धीरे धीरे हम एक दूसरे को चाहने लगे।हमारा एकमात्र ध्येय आजादी ही था ,लेकिन इश्क पर किसका जोर चलता है ,हम प्यार के पाश में फंस गए।
रमा दीदी ने हमारी शादी करवा दी।हम दोनों अपनी गृहस्थी और देश के प्रति अपने कर्तव्य के लिए समर्पित हो गए। समय कहां रुकता है ,हमारे प्यार का अंकुर मेरे पेट में आ गया। मैं पेट से थी ,बलविंदर की खुशी का ठिकाना न था।
मै अब ज्यादा भागदौड़ नहीं कर पाती , धीरे धीरे समय नजदीक आ रहा था, उधर बलविंदर अब बहुत व्यस्त रहता ।एक दिन उसने बताया बहुत बवाल मचने वाला है ,शायद मुझे कोई बड़ी जिम्मेदारी मिले।
मैंने पूछा तो वो टाल गया,क्योंकि मुझे तनाव देना नहीं चाहता था।
ब्रिटिश सरकार ने रॉलेट एक्ट पास किया,जिसमें किसी भी व्यक्ति को शक के आधार पर क्रांतिकारी समझ कर जेल में डाला जा सकता था,जिसमें 2 साल तक की जेल का प्रावधान था।
देश भर में विरोध होने लगा,लेकिन सबसे ज्यादा विरोध अमृतसर में हुआ।डॉक्टर किचलू और सत्यपाल को 9 अप्रैल 1919 को गिरफ्तार कर नजरबंद कर दिया गया था। ये खबर मुझे बलविंदर के दोस्त जग्गी ने दी।उसने बताया हमलोग जलियावाले बाग में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ एकजुट होंगे।
13 तारीख 1919,सुबह के 5 बजे
सुन हरप्रीत आज बैसाखी है,बढ़िया पकवान बना लियो। मैं अभी अमृतसर जा रहा हूं।आज वहां हमसब डॉक्टर साहब की गिरफ्तारी के विरोध में सभा करेंगे।
बहुत दूर दूर से लोग वहां आ रहे हैं।
"पर बलविंदर सरकार ने तो धारा 144 लगा रखी है_मैंने संशय भरे स्वर में कहा।
मैनू तो डर लग्या, तूसी न जाओ।",_दबी जुबान से मैने कहा।
बलविंदर जोर जोर से हंसने लगा _"ये क्या,ये सिखनी डर रही ।अभी तक तो तैनू बड़ी बड़ी गल्या दस्या ,अब शेरनी का दिल बकरी का हो गया।"
मैं झेंप गई ,शायद मैं अपने बच्चे के कारण अब कमजोर पड़ गई थी।
वो चला गया ,हमेशा के लिए उस डायर ने निहत्थे लोगों को बिना वार्निंग के गोलियों से भून डाला उसमें मेरा बल्लू भी था।
खबर सुनकर मैं सदमे में चली गई।जब होश में आई तो मैं अस्पताल में थी ,मैने एक बच्चे को जन्म दिया था।
लेकिन क्या फायदा बलविंदर तो अपने अंश को देखने को दुनिया में नहीं था। उस निर्मम ने कितनी महिलाओं का सुहाग छीना,कितने बच्चों को अनाथ कर दिया।कितनों के परिवार ही खत्म कर दिए।
मैं इस बच्चे को लेकर घर आ गई ,रमा दीदी ने सहारा दिया।एक दिन उन्होंने बताया वो एक सीक्रेट मिशन पर जा रही हैं।अगले दिन बल्लू मेरे पास आया उसने खबर की रमा दीदी नहीं रहीं ,अंग्रेजों ने उन्हें रावी नदी के तट पर गोलियों से भून डाला।किसी तरह अपने साथियों ने पीछे से हमला कर अंग्रेजों को भागने पर मजबूर कर दिया और लाश वहां से उठा लाए हैं।हमारे कई ठिकानों पर उन्होंने कब्जा कर लिया है।उसने मुझे उस जगह का पता बताया जहां रमा दीदी की लाश को अंतिम संस्कार के लिए रखा गया था।
मैं रमा दीदी की मौत से जड़ हो गई ,बारी बारी से एक के बाद एक खबर सुन मैं जैसे अपने होशो हवास में न रही।मैं बल्लू की बताई जगह पर गई ,जहां रमा दीदी के शव को रखा गया था।सारे पार्टी के नेता उपस्थित थे।सबके चेहरे पर उदासी थी ।रमा दीदी के शव को आग के हवाले कर सबने शपथ खाई ,चाहे कुछ भी हो जाए हम कमजोर नहीं पड़ेंगे ।हमें जलियांवाले बाग हत्याकांड के जिम्मेदार अफसर से बदला लेना है और अपने देश को इन गोरों से मुक्त कराना है।अब रमा दीदी की जगह मुझे चुना गया।
मुझे कुछ अफसरों की जासूसी करनी है।
मुझे कल ही पानी के जहाज से कलकत्ता रवाना होना है।
मेरे पास समय कम ,और जिम्मेदारियां ज्यादा है ,मैं छोटे से जोगिंदर को लेकर अपने कर्तव्य को निभा नहीं पाऊंगी ,इसीलिए मुझे अपने फर्ज की खातिर,अपने बलविंदर की खातिर अपने जैसे उन विधवाओं की खातिर खुद को अपने संगठन द्वारा दिए कार्य में झोंकना होगा।
शायद मैं वापस न आ पाऊं,पकड़ी जाऊं,गोलियों से भून दी जाऊं।मेरा और बलविंदर का तो मिलन हो जाएगा लेकिन मेरे जोगिंदर को मैंने उन हाथों में छोड़ा है ,जहां लगता है उसकी परवरिश अच्छे से हो जाएगी।सेठ मुरलीधर बहुत सहृदय पुरुष हैं।
ये है मेरी कहानी उम्मीद है आप मुझे माफ करेंगे ,और मेरी मजबूरी को समझेंगे............।
समाप्त
Abhinav ji
05-Jul-2023 08:10 AM
Bhartiya jeevan sadaiv sanghrsh purn raha hai . Very nice 👍
Reply
Sangeeta singh
05-Jul-2023 11:43 AM
आभार
Reply
Punam verma
05-Jul-2023 07:39 AM
🙏🙏🙏
Reply
Sangeeta singh
05-Jul-2023 11:43 AM
आभार
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पृथ्वी सिंह बेनीवाल
05-Jul-2023 01:06 AM
👏👍🏼
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Sangeeta singh
05-Jul-2023 11:44 AM
धन्यवाद
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