सबह- सुबह जो हमें उठाती वो है मेरी माँ
प्रतियोगिता हेतु रचना
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सबह- सुबह जो हमें उठाती वो है मेरी माँ।
लोरी गा कर हमें सुलाती वो है मेरी माँ।।
धूप में जो छाया बन जाती वो है मेरी माँ।
सब कष्टों को दूर भगाती वो है मेरी माँ।।
जो दिल में मेरे,बसी हुई है वो है मेरी माँ।
हर सांसों में घुली हुई है वो है मेरी माँ।।
सपनों में मेंरे रोज है आती वो है मेरी माँ।
सब देवों में प्रथम पूज्य है वो है मेरी माँ।।
अवनी से जिसका बड़ा है आंचल वो है मेरी माँ।
दुनिया भर का प्यार लुटाती वो है मेरी माँ।।
जिसकी कभी ना तुलना होती वो है मेरी माँ।
जो मुझको हर पल दुलराती वो है मेरी माँ।।
जो सीने से मुझे लगाती वो है मेरी माँ।
वर्षा में जो छतरी बन जाती वो है मेरी माँ।।
याद करो तो दर्शन देती वो है मेरी माँ।
उन्नति पर मेंरी खुश होती थी वो है मेरी माँ।।
प्यार से रहना हमें सिखाती वो है मेरी माँ।
सभी मर्ज की एक दवा थी वो थी मेरी माँ।।
प्रति पल जिसकी याद सताती वो है मेरी माँ।
दुखों को मेंरे जो हर लेती वो है मेरी माँ।।
जो है मेरी जीवन ज्योति वो है मेरी माँ।
तेरी हर पल याद सताती कहाँ छुपी हो माँ।।
अपने आंचल में मुझे छुपा लो आ जाओ अब माँ।
एक दिवस में पूरी ना होती यादें तेरी माँ।।
मुझको हर पल साथ चाहिए आ जाओ मेरी माँ।
गोदी लेकर एक कौर खिला दो अपने बउआ को मां।।
कवि विद्या शंकर अवस्थी( पथिक)
8318583040
Shashank मणि Yadava 'सनम'
15-Jul-2023 03:53 PM
बहुत ही सुंदर और बेहतरीन अभिव्यक्ति,,,, भावों की
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Abhinav ji
15-Jul-2023 07:30 AM
Very nice 👍
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Reena yadav
14-Jul-2023 10:36 PM
👍👍
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