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गीत

गीत

 तुम शब्द बनो,मैं भाव बनूं तो गीत बढ़ता जाता है,
तुम एक तारे की मधुर आवाज़ बनो तो गीत मथुर हो जाता है।

लिख सकता हूं मैं गीत प्रिये पर गायन नहीं मुझे आता,
हैं भाव भरा ये दिल मेरा शब्दों  से सजाना नहीं आता।

भाव भरे दिल की मेरे तुम ही तो हो आवाज़ प्रिये,
मैं शब्द ढ़ूंढ़ता  फ़िरता हूं, तुम भर दो उसमें ज़ान प्रिये।

बेज़ान इस दिल के भावों मे भर देना उनमे प्राण प्रिये
भाव भरे दिल की मेरे तुम ही तो हो आवाज़ प्रिये।

मैं शब्दहीन निशब्द सही,तुम बिन गीत अवगीत हुए,
दे कर शब्द उन भावों को तुमने भावों को मधुर किए।

आवारा सी घूमा करती जल हीन बदरिया अम्बर पर,
घन घन बिजुरिया चमक रही क्रीड़ा करती हैं अम्बर पर।

ऐंसे ही हैं वो गीत मेरे कैंसे उनको लिख पाऊं मैं,
बिन शब्द ज्ञान के मीत मेरे कैंसे अहसास कराऊं मैं।

आनन्द कुमार मित्तल, अलीगढ़

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3 Comments

Gunjan Kamal

16-Jul-2023 01:11 AM

👌👏

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Varsha_Upadhyay

15-Jul-2023 07:28 PM

बहुत खूब

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Alka jain

15-Jul-2023 02:06 PM

Nice one

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