बरसात
बरसात
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झम-झम बारिश देखकर काव्या का मन ललचाय।
कमरे से बाहर निकल कर छत में वो दौड़ी जाय।।
मम्मी-पापा चिल्ला रहे पर कहना वो ना माने।
मम्मी मैं तो जाऊंगी बारिश में खूब नहाने।।
झूम-झूम कर ऐसे नाचे पूरी छत में बलखाय।
पूरी छत में भर गया जो पानी तो उसमें लोटी जाय।।
काव्या को नहाता देखकर बाबा भी रहे ललचाय।
अपने बचपन को याद किया और खुद भी रहे नहाय।।
गर्मी के बाद जो होती बारिश तो तन शीतल होई जाय।
बाबा दादी को बुला रहे कि अब तुमहूं लेव नहाय।।
सावन का यो महिना भी होता है बड़ा सुहाना।
झूले मा बैठि कै सखियां भी छेड़तीं हैं गीत तराना।।
बचपन को अपने याद किया कागज की नाव बनाई।
सड़क में पानी भरा खूब था उसमें फिर नाव चलाई।।
इठलाती बलखाती नौका बहुत दूर तक चली गई।
नाली से फिर नाले में गिरी औ नदी के तट पर पहुच गई।।
विद्या शंकर अवस्थी पथिक कानपुर
Milind salve
17-Jul-2023 11:24 PM
Nice one
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पृथ्वी सिंह बेनीवाल
17-Jul-2023 05:00 PM
👏👍🏼
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