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झूठ

झूठ 

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झूठ बोलना आसां है,

पर बात ना यहीं खतम होती।

एक सिलसिला चल पड़ा जो,

उस पर रोक नहीं होती।

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झूठ के बादल छाए रहते,

कभी बाढ़ ला देते हैं।

जीवन भर का संचित,

प्रतिफल,

एक ही बार बहा देते हैं।

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याद नहीं रहता कि तुमने,

पहले झूठ क्या बोला था।

एक एक से बने श्रंखला, 

अंबार झूठ का लग जाता है।

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निर्मल मन की शांति गंवाई,

खुद जीवन में आग लगाई

एक ना दिन इन झूठों की,

सारी पोल खोल जाता है। 

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झूठ वृक्ष पर लगा हुआ, 

फल सड़ जाता है।

सड़े हुए में खुशबू नहीं है,

ये भी बतला जाता है।

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झूठ आदमी बोला जब भी,

कभी तो फांसी चढ़ जाता है।

सत्य सनातन स्वच्छ साफ है।

डर ना कोई फिर होता है।


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झूठ आदमी बोला जब भी,

कभी तो फांसी चढ़ जाता है।

सत्य सनातन स्वच्छ साफ है।

डर ना कोई फिर होता है।

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बोलो सत्य सदा ही शोभा,

इससे ना परहेज करो।

ना डराएगा तुम्हें स्वप्न में,

एक बार ही सच  आएगा।

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शांति नहीं जाएगी मन की, 

गले की फांसी ना बन पाएगा।   

सत्य सदा बोलो तुम भाई,

झूठ सदा तड़पाएगा।

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रचनाकार - शोभा शर्मा छतरपुर, म.प्र.


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3 Comments

Gunjan Kamal

19-Jul-2023 03:24 AM

👏👌

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Reena yadav

18-Jul-2023 10:34 PM

👍👍

Reply

Varsha_Upadhyay

18-Jul-2023 10:17 PM

Nice

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