इस दिल की गहराई को कोई नापता नहीं
इस दिल की गहराई को कोई नापता नहीं।
ज्यों आसमाँ की परिधि कोई मापता नहीं।।
कितनी हसरतें पल रही है मन में,
मन-समंदर में कोई झांकता नहीं।
हर घड़ी खयालों में है उसी का चेहरा,
कैसे कह दूँ कि उससे कोई राब्ता नहीं।
उसे मान लिया है हमने अपनी मंजिल,
कुछ मंजिलों को पाने का रास्ता नहीं ।
मजलूम की चीखें करती रही मिन्नतें,
खुदा के कहर से कोई काँपता नहीं।
हर किसी की उंगली उठी है दूसरे पर,
क्यों अपने गिरेबाँ में कोई झांकता नहीं।
बशर की जात से डर लग रहा है आज,
इस डर को क्यों कोई भाँपता नहीं।
जो बेटी के हक की लड़ाई लड़ रहे थे ,
उसका हाथ उनमें से कोई थामता नहीं।
प्रीति चौधरी"मनोरमा"
जनपद बुलंदशहर
उत्तरप्रदेश।
Shashank मणि Yadava 'सनम'
10-Sep-2023 09:05 PM
अंतिम दो लाइन ने तो दिल जीत लिया
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
10-Sep-2023 09:05 PM
Wahhhhh बहुत ही सुंदर और बेहतरीन रचना
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