Dr. Vashisth

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ख़्वाब

जो ख़्वाब में रहते हैं वो हक़ीक़त जान लें तो अच्छा होगा, 
हमें वक्त दिखाते हैं वो खुद को भी जान लें तो अच्छा होगा।


माना के जज भी वही है हमारी चाहत के केस का ,
एक बार पक्ष मेरा भी वो  जान लें तो अच्छा होगा ।


शिकायत क्यों करें हम उनसे तनहाई की ?
हम इसे ही किस्मत मान लें तो अच्छा होगा।


चलो छोड़ो वो खुश हैं वो  अपनी महफिलों में ,
हम अपनी भी जगह पहचान लें तो अच्छा होगा ।


परवाह नहीं है उन्हें अगर मेरे होने की जिंदगी में,
हम अपना भी बिस्तर बांध लें तो अच्छा होगा।


सुकून है अगर उसे बिन तेरे इस जहां में साकी,
तू उसका मयखाना फिर छोड़ दे तो अच्छा होगा।


रोकर क्यों जाया कर रही है अश्क  अपने अंश 
इन आंसुओं को यहीं पर थाम लें तो अच्छा होगा।

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2 Comments

pattern तो ग़ज़ल का है... काफ़िआ के अभाव मे इस रचना को नज़्म कहा जा सकता है.... रचना के भाव अतिउत्तम... शुभकामनाएं...

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Dr. Vashisth

02-May-2021 06:17 AM

Shukriya aapka sir gajal ki jaankaari adhik nhi hai bas mn ke bhav hain

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