Sonia Jadhav

Add To collaction

अल्फाजों की अभिव्यक्ति

मन में जज़्बातों का ढेर लगा है, घुटन सी होने लगी है अब इनसे। काश! इन जज़्बातों को अल्फ़ाज़ों में ढाल पाती तो क्या पता मुझे इस घुटन से मुक्ति मिल जाती। शुभेन्दु से कितना कुछ कहना चाहती हूँ, लेकिन उनके पास समय ही कहाँ है मेरे लिए? जब देखो वो हर समय टेबल पर रखी डायरी में कुछ ना कुछ लिखते रहते हैं पेन स कहते हैं एक उपन्यास लिख रहा हूँ प्रेम के बारे में।

जब शुभेन्दु से विवाह का प्रस्ताव आया था और पता चला था वो लेखक हैं तो मन ख़ुशी से झूम उठा था और झट से हाँ कर दी थी, यह सोचकर कि लेखक सामान्य पुरुषों से अधिक सवेंदनशील होते हैं और इस कारण वो मेरे मन की भवनाओं को बेहतर समझ पाएंगे। लेकिन ऐसा हुआ नहीं, अक्सर वो अपने लेखन में इतना डूब जाते हैं कि उनके पास समय ही नहीं होता मेरे जज़्बातों को समझने और अल्फ़ाज़ों को सुनने का। वो अक्सर कहते हैं कहानियां यथार्थ से केवल प्रेरित होतीं है, यथार्थ होतीं नहीं है। वास्तविकता अंश मात्र और कल्पना कहानियों में भरपूर होती है। तुम मेरी पत्नी हो नीलू और  कहानियों की नायिकाएँ मेरी प्रेमिकाएँ जिनके साथ मैं कल्पना में जैसा चाहूँ उस तरह से जी सकता हूँ। 

खैर तुमसे कहानियों के बारे में बात करना फ़िजूल है, तुम एक आम स्त्री हो जिसके बदन से लहसुन, प्याज, मछली की गंध आती है, जिसका जीवन रसोई से शुरू होकर बिस्तर पर खत्म हो जाता है। तुम पेट की अग्नि भी शान्त करती हो और तन की भी। हाँ मुझे तुमसे प्रेम है, जैसा एक पति को अपनी पत्नी से होता है।  तुम मेरी पत्नी हो, प्रेरणा नहीं हो।

तुम्हें पता है अगर एक दिन लिखूँ ना तो टेबल पर पड़ी यह निर्जीव डायरी और उसके पन्नों में सिमटा पेन मुझे बुलाने लगता है लिखने के लिए। मेरी तरफ मेरी डायरी और पेन ऐसे देखते हैं जैसे मेरी बाट जोह रहे हो कि मैं कब बैठूंगा कुर्सी पर और लिखना शुरू करूँगा। खैर छोड़ो, तुम नहीं समझ पाओगी यह सब। नीलू, मुझे भूख लगी है जल्दी से बैंगून भाजा और चाय बनाकर ले आओ।

मेरा मन मर चुका था शुभेन्दु की यह बातें सुनकर। प्रेम का एक बीज था भीतर जिसे मैंने क्रोध में उठाकर मन से बाहर फेंक दिया था। कैसे लेखक थे शुभेन्दु…..प्रेम कहानियाँ लिखते हुए भी अपनी पत्नी के भीतर घुटते प्रेम को नहीं समझ पाए। विवाह तो दो लोगों के बीच होता है लेकिन इस विवाह में कई लोग शामिल हो चुके थे….लेखक और उसके टेबल पर रखी उसकी डायरी और पेन जो पत्नी से ज्यादा उसकी बाट जोहते थे। 

शुभेन्दु को चाय और बैंगून भाजा देकर मैं बाज़ार चली गयी अपने लिए पेन और डायरी खरीदने। मेरे जज़्बातों को अभिव्यक्ति चाहिए थी अल्फाजों के माध्यम से। पेन और डायरी से अब मुझे भी लगाव हो गया था। धीरे-धीरे ही सही मेरे अंदर का लेखक भी जागृत होने लगा था।

❤सोनिया जाधव

#लेखन प्रतियोगिता
# 5 शब्द लेखनी प्रतियोगिता

   14
25 Comments

Bharat Singh rawat

01-Sep-2023 03:51 PM

बहुत खूब

Reply

Khushi jha

26-Oct-2021 02:17 PM

बहुत सुन्दर

Reply

Niraj Pandey

17-Oct-2021 09:00 PM

बहुत ही शानदार

Reply