Dr. Vashisth

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मेरे हालात




हाथ तुम थाम लो फिर से आकर मेरा,
सही जाती नहीं है आपकी ये जुदाई।
लिखने लगी दिल की नाज़ुक क़लम
भरी आसुओं की  है स्याही।



कैसे कहूं मेरे जज़्बात ये,
काबू में नहीं मेरे हालात ये,
रोके रुकती नहीं मेरे बाबुला,
आसुओं की है जो बरसात ये,
कैसा तोहफा दिया नव वर्ष पर,
लिख दी है जीवन में मेरे तनहाई।
लिखने लगी दिल कि नाज़ुक क़लम,
भरी आंसुओं की   है  स्याही।



नन्हा भाई मेरा हो गया है बड़ा,
हर बात पर जो रहता था अडा,
मुझको सीने लगा चुप कराता है वो,
कहे टेंशन ना कर मैं हूं संग खड़ा
फ़र्ज़ बाबुल के तेरे निभाऊंगा मैं,
सह जाऊंगा मैं, दर्द सारे तेरे लिए ,
सह ना पाऊंगा गुड़िया ये तेरी रुलाई।
लिखने लगी दिल कि नाज़ुक क़लम,
भरी आंसुओं की है स्याही।



बड़ा अरमान था बाबुल का मेरे,
गुड़िया मेरी, बड़ी डॉक्टर बने,
सारी दुनिया के बांटे दर्द वो,
देख जिसको पापा का सीना तने,
बड़ी बेदर्द थी, वो घड़ी जो पड़ी,
काम आई ना पापा के मेरी पढ़ाई।
लिखने लगी दिल कि नाज़ुक क़लम,
भरी आसुओं की है स्याही।
 

मेरे हालात

बड़ा धीर था,बॉर्डर पर गम्भीर था,
छवि आपकी घर में  मनमौजी की है, 
रोने का हक़ भी नहीं बिटिया को मिला,
सब कहते तु बेटी बहादुर फ़ौजी की है,
आंख भरती है मेरी तो तेरी याद में, 
उदासी मेरी मां की आंखों में है छाई।
लिखने लगी दिल कि नाज़ुक क़लम
भरी आंसुओं की है स्याही।


करती हूं बातें सब तेरी तस्वीर से,
छिन गया सब मेरा इस तकदीर से,
आंखों में बसी है छवि है आपकी,
कैसे आजाद हो दिल इस जंजीर से,
बड़े संगदिल हुए हो पापा मेरे,
कर गए अंशु को बिन ब्याहे पराई।
लिखने लगी दिल कि नाज़ुक क़लम
भरी आंसुओं की है स्याही।


शब्द आपके  मैं समझी न थी,
बेटी सहन होगी न मुझसे तेरी बिदाई
रख लेते मुझे अपने ही घर बाबुला
क्यों मुझसे अपनी कलाई छुड़ाई
हाथ तुम थाम लो फिर से आकर,
सही जाती नहीं है आपकी ये जुदाई।
लिखने लगी दिल की नाज़ुक क़लम
भरी आसुओं की  है स्याही।  

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