लेखनी प्रतियोगिता -29-Jul-2023 एक गरीब की दास्तां
कर गई ऑंखें बयान, महंगाई करती है हैरान।
ऑंखों के नीचे पड़े गड्ढे, सूख गए ऑंसू के टपके।
दिल बन गया मेरा पाषाण, छूटते दिलों में गमों के बाण।
ऑंसू भी आज कहे, सावन की बारिशें काली लगे।
हो गए महंगे चपाती दाल, कैसे बनूं परिवार का ढाल।
बह बह कर आंसू सूख गए, महंगाई के समुंदर में खो गए।
जीना हम भूल गए, ऑंसू धूल बन गए।
गरीबी की पड़ गई पदचाप, महंगाई बन गई सांप।
निरंतर मुझको डसता,सोच- सोचकर हर पर मरता।
ऐसी होती है महंगाई,कह जाती ऑंखें सच्चाई।
लेखिका
प्रियंका भूतड़ा प्रिया ✍️
Varsha_Upadhyay
30-Jul-2023 11:30 PM
बहुत खूब
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
30-Jul-2023 08:48 AM
सुन्दर सृजन
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Reena yadav
30-Jul-2023 12:37 AM
👍👍
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