सावन के बादल
सावन के बादल
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सावन के ये कैसे बादल जो पानी भी बरसा ना सके।
गर्मी से तपती धरती मां को शीतलता पहुंचा ना सके ।।
धिक्कार है ऐसे मेघों को बिन पानी ही घूमते रहते हैं।
उमड़-घुमड़ कर आते तो हैं सूखे ही गरजते रहते हैं।।
इन्द्र देव के अनुशासन का मेघों में कोई प्रभाव नहीं।
क्या भ्रष्टाचार वहां भी है बिन रिश्वत कोई काम नहीं।।
रिश्वत अगर चाहिए तो फिर हम यज्ञ यहां पर करते हैं।
फिर देखेंगे इन मेघों को,कि वो कैसे नहीं बरसते हैं।।
त्रिपुरारी से विनती मेरी मेघों को आदेशित कर दो।
तपती हुई धरा को प्रभु सावन में हरी भरी कर दो।।
विद्या शंकर अवस्थी पथिक कानपुर