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मुखियाईन

खाट का पाया नवजात पोती की गर्दन पर रख निर्दयी मुखियाईन दादी ने "जा लाड़ो भैया को भेज!!" कहते हुए झटके से पाया दबा दिया। पोती एक क्षण में शान्त हो गई। 


कम्मो दाई की आत्मा बुरी तरह कसकने लगी। उसने दुख और वितृष्णा से अपना मुंह फेर लिया।।

कम्मो दाई पूरे गाँव में पहचानी जाती थी। सब उसे मानते भी थे। गांव के हर घर में उसी के हाथ के जने बच्चे-बच्चियां थे। उससे पहले उसकी सास ये काम करती थी। कम्मो गाँव में बहू बनके आई तो कुछ सालों के बाद उसकी सास उसे अपने साथ घरों में ले जाने लगी, और अपना हुनर उसने बहू को सिखा कर उसके सुपुर्द कर दिया।

कम्मो दाई जल्दी-जल्दी हवेली की ओर चली जा रही है। आज उसे हवेली से अच्छी आमदनी की उम्मीद थी। वह सोच रही थी कि अगर हवेली में पोते का जन्म हो गया तो मुखियाईन आज उसकी गरीबी दूर कर देंगी!! 

अगर पोती हुई तो कोई बात नहीं ईश्वर की मर्जी मुझे तो मेहनताना और बख़्शीश मिलेगी ही!!

हवेली पहुँचते ही मुखियाईन बोली, "अरी! इतनी देर लगा दी चल जल्दी आ जा, बहू दर्द से तड़प रही है!!"

दोनों बड़े से सजे हुए कमरे में पहुंची। बहू पलंग पर दर्द में लेटी हुई और दासियाँ उसके कमर, पैर और माथे को सहला रही थीं, बहू बीच-बीच में कराह उठती।

कम्मो दाई ने अपनी जगह संभाली और बहू के पेट पर अपने हाथ रखे। बहू को पहला बच्चा होने वाला था। 

सभी घरवाले बच्चे के आने का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे और उन्हें उम्मीद थी कि उनके घर में उनका वारिस पोता ही होगा।

थोड़ी देर में बच्चे के रोने की आवाज गूंजी।
बाहर बैठक में बैठे लोग बच्चे की आवाज सुनकर एक-दूसरे को बधाई देने लगे!!

तभी बैठक में दासी ने प्रवेश किया, 
"मालिक लक्ष्मी आई है!!"

सुनते ही सन्नाटा छा गया, जैसे सबको साँप सूंघ गया हो!! सुई भी गिरे तो आवाज सुनाई दे!! घर में मातम पसर गया!!
बड़े ठाकुर दनदनाते हुए अंदर गए। जोर से चिल्लाए, "मुखियाईन !!"
मुखियाईन चेहरे पर मुर्दनी लिए बाहर आई!!
दोनों ने आपस में खुसुर-पुसुर की!!
मुखियाईन अंदर पहुंची, बहू अर्धचेतनावस्था में थी। उसकी बगल से बच्ची को उठा लिया और दूसरे कमरे में ले गई।

कम्मो दाई उनके साथ चलने को उद्यत हुई!!

मुखियाईन  बोली, "तू यहीं रुक!!"

कम्मो के पैर ठिठक गए, अनहोनी के आशंका से कलेजा कांप गया, वह चुपके से मुखियाईन के पीछे पहुंची। मुखियाईन की करनी देखकर कम्मो का दिलो-दिमाग सुन्न पड़ गया। मुखियाईन  के प्रति कम्मो नफरत और कड़वाहट से भर गई!!

मुखियाईन ने अपनी करतूत को अंजाम देकर नवजात बच्ची को उठाया और तसल्ली की कि जिंदा तो नहीं है!!
 
जैसे ही वह दरवाजे की ओर पलटी देखा कम्मो दाई आश्चर्य और घृणा के भाव लिए उसे फटी-फटी आंखों से देख रही है।

मुखियाईन  बोली, "तू यहाँ क्या कर रही है??"

"ये ले बच्ची को बहू के बगल में लिटा कर रोना-पीटना शुरू कर कि मरी हुई बच्ची पैदा हुई है!!"

कम्मो बोली, "मुखियाईन  मुझसे न हो सकेगा!!" और भागती हुई मुख्य दरवाजे से बाहर निकल गई।

ठमुखियाईन  चिल्लाती रह गई, अरे! "अपना मेहनताना तो लेती जा।"

स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान)

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10 Comments

Babita patel

24-Aug-2023 06:15 AM

nice one

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madhura

17-Aug-2023 04:31 AM

अद्भुत

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kashish

16-Aug-2023 07:19 PM

Very nice

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