अदल बदल भाग - 6

अदल-बदल

डाक्टर कृष्णगोपाल आज बहुत खुश थे। वे उमंग में भरे थे, जल्दी-जल्दी हाथ में डाक्टरी औजारों का बैग लिए घर में घुसे, टेबुल पर बैग पटका, कपड़े उतारे और बाथरूम में घुस गए। बाथरूम से सीटी की तानें आने लगी और सुगन्धित साबुन की महक घर भर में फैल गई। बाथरूम ही से उन्होंने विमलादेवी पर हुक्म चलाया कि झटपट चाइना सिल्क का सूट निकाल दें।

विमलादेवी ने सूट निकाल दिया, कोट की पाकेट में रूमाल रख दिया और पतलून में गेलिस चढ़ा दी। परन्तु डाक्टर कृष्ण-गोपाल जब जल्दी-जल्दी सूट पहन, मांग-पट्टी से लैस होकर बाहर जाने को तैयार हो गए---तो विमलादेवी ने उनके पास आकर धीरे से कहा---'और खाना?'

'खाना नहीं खाऊंगा।'

'क्यों?'

'पार्टी है, वहां खाना होगा।'

'लेकिन रोज-रोज की ये पार्टियां कैसी हैं?'

'तुम्हें इस पंचायत से वास्ता?'

'आप नाहक तीखे होते हैं, आखिर यह घर है कि सराय! सुबह से निकले और अब नौ बजे हैं। दिनभर गायब। अब आए सो चल दिए। शायद एक-दो बजे आएंगे, शराब में बदहवास। अबमैं कहां तक रोज-रोज यह भुगतूं। यह कोनसा जिन्दगी का तरीका है।'

डाक्टर ने घड़ी पर नजर फेंककर कहा---'ओफ, नौ यहीं बज गए? गजब हो गया। झटपट सेफ से दो सौ रुपये निकाल दो। देर हो रही है।'

'दो सौ रुपये किसलिए?'

'तुम्हारे क्रिया-कर्म के लिए। कहता हूं, देर हो रही है, और तुम अपनी हुज्जत ही नहीं छोड़तीं---अजीब जाहिल हो।'

'जाहिल ही सही, मगर तुम्हारी पत्नी हूं। मुझे भी कुछ हक है।'

'तो यह हक का दावा अदालत में दाखिल करना बाबा, मेरा वक्त बर्बाद न करो, रुपये निकाल दो।'

'मैं पूछती हूं, किसलिए?'

'तुम पूछने वाली कौन हो? मुझे जरूरत है।'

'मैं जानना चाहती हूं---क्या जरूरत है।'

'हद कर दी। अरी बेवकूफ औरत, मैं रुपये मांग रहा हूं, सुना कि नहीं।'

'और मैं यह जानना चाहती हूं कि रोज-रोज रात-रातभर घर से बाहर रहने, शराबखोरी करने और इतना रुपया फूंकने का मतलब क्या है?

'तबीयत कोफ्त कर दी। मैं कहता हूं, रुपया निकाल दो।'

'मैं कहती हूं, रुपया नहीं मिलेगा।'

'क्यों नहीं मिलेगा? क्या रुपया तुम्हारे बाप का है?'

'बाप के रुपये पर हिन्दू स्त्री का अधिकार नहीं होता। रुपया मेरे पति का है। उसपर मेरा पूरा अधिकार है।'

'अरी डायन, यह अधिकार तू मेरे मरने के बाद दिखाना, अभी तो मैं जिन्दा हूं और अपने रुपये का तथा हर एक चीज का मालिक मैं ही हूं।'

'मुझे तुमसे बहस नहीं करनी है। लेकिन मैं तुम्हें आज नहीं जाने दूंगी।'

'तू नहीं जाने देगी? और रुपया भी नहीं देगी?'

'नहीं दूंगी।'

'तेरी इतनी हिम्मत! मैं तुझे काटकर रख दूंगा।'

'ऐसा कर सकते हो।

डाक्टर तेजी से आगे बढ़कर एकदम विमलादेवी के निकट आ गए, और दांत किटकिटाकर कहा-'सेफ की चाभी दे !'

'नहीं दूंगी।'

'अरी चुडैल, बता चाभी कहां है ?'

'नहीं बताऊंगी, नहीं दूंगी।'

'क्या तू आज ही मरना चाहती है ?'

'जब मरने का वक्त आएगा, खुशी से मरूंगी?'

'तो मर फिर।'

डाक्टर ने जोर से उसका गला दबाकर उसे ऊपर उठा लिया और फिर जमीन पर पटक दिया। इसके बाद वे सेफ की चाभी घर भर में ढूंढ़ने को आलमारी और मेजों की ड्रावरों से सामान निकाल-निकालकर इधर-उधर छितराने लगे। विमला-देवी का दीवार से टकराकर सिर फट गया और वे खून में नहा गईं। पांच वर्ष की सोती हुई बच्ची जागकर चीख मार-मारकर रोने लगी। डाक्टर को आखिर चाभी मिल गई। वे सेफ की ओर लपके। पर विमलादेवी ने दौड़कर दोनों हाथों से सेफ पकड़ लिया। वह सेफ से सीना भिड़ाकर खड़ी हो गईं। डाक्टर ने तड़ा-तड़ सेफ की बड़ी चाभी की निर्दय मार विमलादेवी की उंगलियों पर मारनी शुरू की। विमलादेवी के हाथ लोहूलुहान हो गए। वे बेहोश होने लगीं । उन्हें एक ओर ढकेलकर डाक्टर कृष्णगोपाल ने सेफ का ताला खोल डाला और नोटों का बण्डल जेब में डाल तेजी से घर के बाहर हो गए। बेहोश और खून में लतपत पत्नी की ओर उन्होंने नजर नहीं डाली, भय और आतंक से माता की छाती पर सिसकती हुई पुत्री पर भी नहीं।

जारी है

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