अदल बदल भाग - 7
अदल-बदल
मायादेवी आकर अपने कमरे में सो गईं। दिन निकलने पर भी सोती ही रहीं। तमाम दिन वे सोती ही रहीं। मास्टर साहब यद्यपि पत्नी के स्वेच्छाचार से खुश न थे, फिर भी उन्होंने उसे एक-दो बार उठने के लिए कहा पर मायादेवी ने हर बार जवाब दिया कि तबीयत अच्छी नहीं है। विवश मास्टर बेचारे स्वयं खापकाकर पुत्री को लेकर स्कूल चले गए। स्कूल से लौटकर जब शाम को उन्होंने देखा कि मायादेवी अब भी सो रही हैं और जो भोजन वे बनाकर उनके लिए रख गए थे, वह भी उन्होंने खाया-पिया नहीं है तब वे उनके कमरे में जाकर बोले-
'क्या बात है प्रभा की मां, तमाम दिन बीत गया, कब तक सोती रहोगी।
माया ने क्रोध से कहा-'तुम बड़े निर्दयी आदमी हो। आदमी की तबीयत का भी ख्याल नहीं रखते। मैं मर रही हूं और तुम्हें परवाह नहीं।'
'तुम्हें हुआ क्या है ?
'मेरी तबीयत बहुत खराब है।'
मास्टर ने उसका अंग छूकर कहा-'बुखार तो मालूम नहीं होता।'
'तुम क्या डाक्टर हो, और तुम्हें मालूम क्योंकर होगा, मैं जब तक मर न जाऊं, तुम्हें मेरी बीमारी का विश्वास क्यों आने लगा।
'तो तुम चाहती क्या हो, डाक्टर बुला लाऊं?'
'डाक्टर क्या चाहने से बुलाया जाता है ? फिर तुम डाक्टर को बुलाओगे क्यों ? रुपया जो खर्च हो जाएगा।'
मास्टर ने क्षणभर सोचा। फिर धीरे से कहा-'जाता हूं,डाक्टर बुला लाता हूं।'
माया ने कहा-'कौनसा डाक्टर लाओगे?'
'किसे लाऊं?
'उस मुहल्ले के डाक्टर का क्या नाम है, परसों पड़ोस में आया था। एक दिन की दवा में आराम हो गया। उसीको बुलाओ!'
मास्टर जाकर कृष्णगोपाल को बुला लाए। डाक्टर ने मायादेवी की भली भांति जांच को। दिल देखा, नब्ज देखी, जबान देखी, पीठ उंगली से ठोकी, आंखें देखी और कुछ गहरे सोच में गुम-सुम बैठ गए।
मास्टर ने शंकित दृष्टि से डाक्टर को देखकर कहा-'डाक्टर साहब, क्या हालत है ?
डाक्टर ने मास्टर को एक तरफ ले जाकर कहा-'अभी कुछ नहीं कह सकता। बुखार तो नहीं है, मगर हथेली और तलुओं में जितनी गर्मी होनी चाहिए उतनी नहीं है, आंखों का रंग हर पल में बदलता है, ओठ सूख गए हैं, नाड़ी की चाल बहुत खराब तो नहीं है, परन्तु अनियमित है, उधर दिल की धड़कन...' डाक्टर एकाएक चुप हो गए। जैसे वे किसी गम्भीर समस्या को हल कर रहे हों।
मास्टर साहब ने घबराकर कहा-'कहिए, कहिए, दिल की धड़कन!'
डाक्टर ने हाथ की घड़ी पर एक नजर डाली। फिर कहा--
'मैं ज़रा द्विविधा में पड़ गया हूं।' फिर कुछ सोचकर कहा-- 'सुई लगानी ही पड़ेगी!'
मास्टर ने डरते-डरते कहा--'सूई!' और उन्होंने माया की ओर घबराई दृष्टि से देखा। माया ने डाक्टर की ओर एक बार देखकर आंखें नीची कर लीं। डाक्टर ने प्रिस्किप्शन लिखकर धीरे से कहा--'जी हां, सूई लगाना जरूरी है, यह प्रिस्किप्शन लीजिए और जरा जल्दी से डिस्पेन्सरी तक चले जाइए, यह दवा ले आइए।'
'और आप तब तक?' मास्टर ने प्रिस्किप्शन हाथ में लेकर कहा।
'फिक्र मत कीजिए। हां ज़रा गर्म पानी•••'
मास्टर ने प्रभा से कहा--'बेटी, मैं अभी दवा लेकर आता हूं। तुम ज़रा अंगीठी जलाकर पानी गर्म तो कर दो।'
मास्टर तेज़ी से चले गए। डाक्टर ने सीटी बजाते हुए मायादेवी की ओर देखा, फिर प्रभा से कहा--'ज़रा जल्दी करो बेटी। हां, इधर धुआं मत करो, तुम्हारी माताजी को तकलीफ होगी। अंगीठी उधर बाहर ले जाओ।'
प्रभा ने कहा--'बहुत अच्छा!' वह बाहर जाकर अंगीठी जलाने लगी।
अब डाक्टर ने इत्मीनान से मायादेवी के पास कुर्सी खींचकर बैठते हुए कहा-- 'कहिए हुजूर, क्या इरादा है? आप झूठ-मूठ किसलिए बीमार बनी हैं, देखने में तो आप असल हीरे की कनी हैं।'
मायादेवी ने मुस्कराकर कहा--'बड़े चंट हैं आप डाक्टर, दोनों को भेज दिया, लेकिन मैं सचमुच बीमार हूं।'
'बीमारी क्या है?'
'आप इतने बड़े डाक्टर हैं, पता लगाइए!'
'नहीं लगा सकता मायादेवी, अब आप ही मदद कीजिए।'
'आपकी डाक्टरी को ज़ंग लग गई क्या?'
'ज़ंग ही लग गई समझिए, आप हैं ही ऐसी कि देखते ही आदमी की अक्ल पर पत्थर पड़ जाते हैं!'
'अच्छा ही है, मगर मैं परेशान हूं!'
'किससे?'
'बीमारी से और किससे!'
'लेकिन हुजूर, बीमारी क्या है?'
'रातभर नींद नहीं आती।'
'वाह, इस बीमारी का तो मैं स्पेशलिस्ट हूं। मगर यह कहिए कि आपके दिल में कुछ अनोखे-अनोखे खयाल तो नहीं आते?'
'अनोखे खयाल?'
'जी हां, जिनमें दिल की उमंगें उमड़ती हों, बढ़े-चढ़े हौसले हों, जीवन का भरपूर सुख लेने, दुनिया को जी भरकर देखने के इरादे हों।'
'हां, हां आते हैं, परन्तु यह भी कोई बीमारी है?'
'बड़ी भारी बीमारी है, मगर यह कहिए मायादेवी, इस भैंसे के साथ आपकी कैसे पटती होगी। माशाअल्ला, आप एक अप- टुडेट, ऊंचे खयाल की स्मार्ट लेडी हैं, ऐसा मालूम होता है जैसे आपका जन्म खुश होने और खेलने-खाने के लिए ही हुआ हो। लेकिन बुरा मत मानिए मायादेवी, मास्टर साहब अजब बागड़- बिल्ला--मेरा मतलब आपके लायक तो वे किसी हालत में नहीं मालूम होते।'
'ओफ, आप यह क्या कह रहे हैं?'
'श्रीमतीजी, स्त्री का जन्म प्रेम के लिए हुआ है। जो स्त्री प्रेम के तत्त्व को जानती है, मैं उसके चरणों का दास हूं।'
'आपने तो मेरा दुःख बढ़ा दिया। मेरा दुखता फोड़ा छू दिया।'
'अब इस फोड़े को चीरकर इसका सब मवाद निकालकर अच्छा करूंगा।'
'डाक्टर, आप आशाओं का बहुत बोझ मत लादिए।'
'वाह, आशा का संदेश तो आप ही की में है।' डाक्टर ने मायादेवी की तरफ एक दुष्टताभरी दृष्टि से देखकर हंस दिया।
मायादेवी ने नकली क्रोध से कहा--'ओफ, आप गोली मारकर हंसते हैं डाक्टर!'
'गोली मारना वीरता का काम है, और गोली मारकर हंसना, तो वीरता से भी बढ़कर है। तो आपके कथन का मतलब यह हुआ कि मैं अपने से भी बड़ा हूं।'
इतना कहकर उस डाक्टर ने एकाएक मायादेवी का हाथ पकड़ लिया,और कहा--'मायादेवी, मैं समझता हूं कि तुम गलत जगह पर आई हो, मैं तुम्हारा हाथ पकड़कर संसार में उतर पड़ना चाहता हूं।'
'मैं ऊब गई हूं।' माया ने वेग से सांस लेकर कहा।
'तो साहस करो!' डाक्टर ने माया का नर्म हाथ अपनी मुट्ठी में कस लिया।
'मगर कैसे?' मायादेवी ने बेचैन होकर कहा।
'हिन्दू कोडबिल हम पर आशीर्वाद की वर्षा करेगा, समझ लो, वह तुम्हारे और मेरे लिए ही बन रहा है। आओ, दुनिया के सामने नया आदर्श उपस्थित करो।'
मायादेवी ने घबराकर अपना हाथ डाक्टर के हाथ से खींचकर कहा--'ठहरो, मुझे कुछ सोचने दो।'
इसी समय मास्टर साहब ने झपटते हुए आकर पुत्री को पुकारकर कहा---
'पानी गर्म हुआ बेटी?'
'जी हां, गर्म हो गया।'
डाक्टर ने सूई लगाकर कहा---'मास्टर, साहब,श्रीमतीजी को शायद बारह सूई लगानी पड़ेंगी। मेरा निरन्तर आना मुश्किल है, बहुत काम रहता है। अच्छा होता, श्रीमतीजी बारह-एक बजे दोपहर को डिस्पेन्सरी में आ जाया करें, उसी समय ज़रा फुर्सत रहती है। ज्यादा समय नहीं लगेगा।'
मास्टर साहब ने सिर खुजाकर कहा---'लेकिन वह तो मेरे स्कूल जाने का समय है।'
'तो क्या हर्ज है, श्रीमतीजी बच्चे के साथ या किसी नौकर को लेकर आ सकती हैं, ज्यादा दूर भी तो नहीं है।'
मास्टर साहब ने कहा---'तब ठीक है, ऐसा ही होगा। आपका मैं बहुत कृतज्ञ हूं।' उन्होंने फीस देकर डाक्टर को विदा किया।
जारी है