अदल बदल भाग - 8

अदल-बदल

डाक्टर कृष्णगोपाल ने श्रीमती मायादेवी का ठीक-ठीक इलाज कर दिया। उनका प्रतिदिन डिस्पेन्सरी में आना, यथेष्ट समय तक वहां ठहरना, गपशप उड़ाना, ठहाके लगाना, बालिका की आंखों में धूल झोंकना, सब कुछ हुआ। मायादेवी की धृष्टता और साहस बहुत बढ़ गया। डाक्टर से, प्रथम संकेत में साफ-साफ उसकी बात हो गई। प्रेम के बहुत-बहुत प्रवचन हुए, वायदे हुए, मान-मनौवल हुई। अन्त में दोनों ही इस परिणाम पर पहुंचे कि दोनों को एक होकर रहने ही में उनका और संसार का भला है।

इसका परिणाम यह हुआ कि मायादेवी का मन अपने पति, पुत्री और घर से बिल्कुल उतर गया और उसका मन इन सबसे विद्रोह करने को उन्मत्त हो उठा। स्त्री-स्वातन्त्र्य की आड़ में वासना और अज्ञान का जो अस्तित्व था, उस पर उसने विचार नहीं किया।

डाक्टर कृष्णगोपाल दुनिया देखे हुए चंट आदमी थे। मायादेवी पर उनकी बहुत दिन से नजर थी। अब ज्योंही उन्हें मायादेवी की मानसिक दुर्बलता का पता चला तो उन्होंने उसे स्त्रियों की स्वाधीनता की वासना से अभिभूत कर दिया। मायादेवी के सिर पर स्त्री-स्वातन्त्र्य का ऐसा भूत सवार हुआ कि उन्होंने इसके लिए बड़े-से-बड़ा खतरा उठाना स्वीकार कर लिया। और एक दिन डाक्टर से उसकी खुलकर इस सम्बन्ध में बातचीत हुई।

डाक्टर ने कहा--'अब आंखमिचौनी खेलने का क्या काम है मायादेवी! जो करना है वह कर डालिए।'

'मैं भी यही चाहती हूं। परन्तु आपसे डरती हूं। सच पूछा जाए तो मैं पुरुष मात्र पर तनिक भी विश्वास नहीं करती।'

'क्या मुझपर भी?'

'क्यों, आप में क्या सुरखाब के पर लगे हैं?'

'मेरा तो कुछ ऐसा ही ख्याल था।'

'वह किस आधार पर?'

'श्रीमती मायादेवी इस दास पर इतनी कृपादृष्टि रखती हैं, इसी आधार पर!'

'तो आप मुंह धो रखिए! मैं पुरुषों की, कानी कौड़ी के बरा बर भी इज्जत नहीं करती, मैं उनके फंदे में फंसकर अपनी स्वाधीनता नष्ट करना नहीं चाहती। मुझे क्या पड़ी है कि एक बन्धन छोड़ दूसरे में गर्दन फंसाऊं।'

'तो आपके बिचार से किसीको प्रेम करना गुनाह हो गया।'

'यह तो मैं नहीं जानती, परन्तु मैं पुरुषों के प्रेम पर कोई भरोसा नहीं करती। उनका प्रेम वास्तव में स्त्रियों को फंसाने का जाल है।'

'यह महज आपका ख्याल ही ख्याल है। मायादेवी, पुरुष जब किसी स्त्री से प्रेम करता है तो अपनी हंसी खो डालता है, अभी आपका शायद किसी पुरुष से वास्ता नहीं पड़ा है।'

डाक्टर ने अजब लहजे में कुछ मुस्कराकर यह बात कही और सिगरेट निकालकर जलाई।

मायादेवी ने मुस्कराकर कहा--'यदि कोई पुरुष मिल गया तो जांच कर देखूगी।'

'अवश्य देखिए मायादेवी!'

मायादेवी ने हंसकर नमस्ते किया और चल दी। लेकिन डाक्टर ने बाधा देकर कहा--

'यह क्या? आप बिना जबाब दिए ही चल दीं। क्या मैं समझूं कि आप मैदान छोड़कर भाग रही हैं।'

'अच्छा, आप ऐसा समझने की भी जुर्रत कर सकते हैं?' मायादेवी ने ज़रा नखरे से मुस्कराकर कहा।

डाक्टर ने हंसकर कहा--'तो वादा कीजिए, आज रात को क्लब में अवश्य आने की कृपा करेंगी।'

'देखा जाएगा, तबीयत हुई तो आऊंगी।'

'देखिए, आप इस समय एक डाक्टर के सामने हैं। तबीयत में यदि कुछ गड़बड़ी हो तो अभी कह दीजिए, चुटकी बजाते ठीक कर दूंगा। आप मेरी सूई की करामात तो जानती ही हैं।'

'ये झांसे आप मास्टर साहब को दीजिए। मायादेवी पर उनका असर कुछ नहीं हो सकता।'

'तब तो हाथ जोड़कर प्रार्थना करने के सिवाय और कोई चारा नहीं रह जाता।

'यह आप जानें, मैं तो आपसे अनुरोध करती नहीं।'

'आज रात्रि में आप क्लब अरश्व पधारिए। सेठ साहब का भी भारी अनुरोध है।'

'अच्छा आऊंगी'---मायादेवी ने एक कटाक्षपात किया, और चल दी।

जारी है

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