मित्र के नाम एक संदेश
मित्र के नाम एक संदेश
शब्द सुमनो के पिरोकर
आज मैं कविता लिख रहा हूं
कितनें भी अड़चनें क्यों न आएं
अपनी मित्रता हो कृष्ण सुदामा जैसा।
जब तुम थपथपाते हो मेरा कंधा
तो मुझें हौंसला दे जाते है
जब मिलता है साथ तुम्हारा
तो मुझें हिम्मत दे जाते है।
आंखें भींग जाती है मेरा
जब कठिनाइयों में तेरा जीवन होता है
बिना किसी परवाह किए अपना
सर्वस्व त्यागकर तेरा ही याद आती है।
आज मुझें भी चिंता हो रही है
तुमसे बस एक आश्वासन मांग रहा हूं
कलयुग के इस नए दौर में भी
अपनी मित्रता हो कृष्ण सुदामा जैसा।
मैं यदि शब्द हूं, इस कविता के
तो तुम चौपाई बन जाना
जीवन के इस कोरे कागज पर
मैं यदि गीत हूं, तो तुम कविताई बन जाना।
शब्द सुमनो के पिरोकर
आज मैं कविता लिख रहा हूं
कितनें भी अड़चनें क्यों न आएं
अपनी मित्रता हो कृष्ण सुदामा जैसा।
नूतन लाल साहू नवीन
पृथ्वी सिंह बेनीवाल
06-Aug-2023 09:17 PM
👏👌👍🏼
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