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लेखनी प्रतियोगिता -04-Aug-2023 एक भयानक बरसात



शीर्षक = वह भयानक बरसात




उत्तरी भारत में मानसून की पहली बारिश बहुत ज़ोरो शोरो में हो रही थी, ज्यादातर घरों में कढ़ाई चूल्हे पर चढ़ चुकी थी ताकि गरमा गर्म पकोड़े और चाय के साथ बरसात की पहली बारिश का आंनद लिया जाए, गली में बच्चें बूढ़े सब ही बारिश में भीग कर बारिश का आंनद ले रहे थे



अपनी बालकनी से बारिश की बूंदो का आंनद ले रही ऋतू ने अपनी दादी से कहा " बरसात का मौसम भी कितना अच्छा है न, सब कितना खुश हो जाते है ज़ब बारिश पडती है, बच्चें स्कूल नही जा पाते है,,, दफ़्तरो की भी छुट्टी हो जाती है,,, सब कितना मजा करते है,,, साथ ही साथ खाने पीने का मजा भी दोगुना हो जाता है,,, सही है,,, क्यूँ न दादी "


ऋतू की दादी, जो कि बरसात की हो रही उस तेज बारिश में कही खो सी गयी थी, और जो कुछ भी ऋतू ने कहा उन्होंने कुछ सुना ही नही,, उन्हें इस तरह खोये हुए देख " ऋतू ने दादी के कंधे पर हाथ रख उन्हें हिलाते हुए कहा " हाँ,, दादी कहा खो गयी,,, कही दादा की तो याद नही आ गयी इस सुहाने मौसम में "


"हट नालायक,,, जो मन में आता है बोले जाती है,," ऋतू की दादी सागरिका जी ने कहा उसे प्यार से डांट लगाते हुए


"अच्छा,,, अच्छा सॉरी,, सॉरी गलती हो गयी,,, अब नही कहूँगी,,, लेकिन ये तो जान सकती हूँ कहा खोयी हुई थी आप,,, क्या आपने मेरी बात सुनी,,, जो मैंने कहा " ऋतू ने कहा दादी के पास जाते हुए


"यही कि बरसात का मौसम भी कितनी सारी खुशियाँ लेकर आता है, पेड़ पौधों को भी अच्छे से पानी मिल जाता है, जमीन भी हरी भरी हो जाती है,,, गर्मी से भी राहत मिल जाती है,,, बच्चें भी स्कूल से छुट्टी कर आराम से घर पर एन्जॉय करते है,,,और हम जैसे दफ़्तरों में काम करने वालो को भी छुट्टी मिल जाती है, अब बारिश में भीग कर बीमार पड़ कर हफ्ते भर की छुट्टी लेने से अच्छा है की ज़ब बारिश हो तब छुट्टी ले लो, आराम से घर पर बैठ कर बारिश का मजा  लो देखो मम्मी भी तो रसोई में ख़डी कब से पकोड़े बना रही है, कई तो हम लोगो ने खा भी लिए और तो और दोपहर और रात का खाना भी अंदर डिसकस हो गया है, दोपहर में आलू के परांठे और रात को दाल चावल " ऋतू ने एक सास में ही सब कुछ कह दिया


इतना सब ऋतू ने कहा लेकिन फिर भी उसकी दादी खामोश ही रही और तो और उनकी आँखों में पानी भी भर आया, उन्हें इस तरह देख ऋतू ने अपनी दादी का हाथ पकड़ा और बोली " दादी क्या बात है? आपकी आँखों में पानी सब ठीक तो है,,,आपकी तबीयत तो ठीक है न,,, आपने दवाई तो ली थी न "


"हाँ,,, हाँ सब ठीक है,,, दवाई भी ली थी " सागरिका जी ने कहा और वहाँ से उठ कर अपने कमरे की और जाने लगी


उन्हें रोकते हुए ऋतू ने कहा " क्या हुआ दादी? कल तक तो आप ठीक थी,,, लेकिन अब इस तरह उदास क्यूँ हो,,, आपने पकोड़े भी नही खाये जबकी आपको तो डॉक्टर के मना करने के बाद भी चोरी छिपकर खा लेती हो, और आज तो माँ ने सामने से लाकर दिए फिर भी आपने नही खाये "


"कुछ नही बेटा बस मन नही है,,, तू जाकर बारिश का आंनद ले मैं कमरे में जा रही हूँ " सागरिका जी ने कहा और जाने लगी


"नही मुझे नही जाना,,, ज़ब तक आप मुझे बता नही दोगी कि आप इतने अच्छे मौसम में उदास क्यूँ हो?जहाँ सब लोग बारिश का आंनद ले रहे है वही आप अंदर कमरे में जा रही हो,, जरूर कोई तो वजह है, और वो वजह मुझे जाननी है " ऋतू ने कहा


"बेटा जिद्द नही करते है, तुम जाओ,, मैं अपने कमरे में जा रही हूँ,,, "सागरिका जी ने कहा


लेकिन ऋतू कहा मानने वालो में से थी, वो तो दादी के साथ कमरे तक आ गयी, आखिर कार सागरिका जी बोल पड़ी " ठीक है बताती हूँ,, क्यूंकि तू पूछे बिना तो मानने से रही,,, तू कह रही थी न कि बारिश और मानसून अपने साथ ढेर सारी खुशियाँ लाता है,,, लेकिन ऐसा हर किसी की जिंदगी में नही होता है,,, जहाँ कही बारिश मजा बन कर बरस रही होती है वही कही सजा बन कर बरस रही होती है


सागरिका जी ने कहा और उनके कमरे में रखे एक संदूक को खोलने लगी और उसमे से एक सूटकेस निकाल कर ऋतू के सामने रख दिया


"ये क्या है दादी? आज से पहल तो नही देखा " ऋतू ने कहा


"मैंने कभी दिखाया नही था, तो तू कैसे देख पाती " सागरिका जी ने कहा


"इसमें क्या है दादी,,, मुझे दिखाओ " ऋतू ने कहा

सागरिका जी भावुक होते हुए उस पर हाथ फेरते हुए बोली " ये सिर्फ सूटकेस नही है,,मेरा पूरा बचपन है,,, उससे जुडी यादें है,,, मेरा पूरा गांव इस सूट केस में बंद है "


ऋतू को कुछ समझ नही आ रहा था, वो दादी को बीच में ही रोकते हुए बोली " क्या? पूरा गांव,,, पूरा बचपन वो भी इस सूटकेस में,,, क्या दादी मज़ाक कर रही हो "


"जानती हूँ,,, तुझे मज़ाक लगेगा,,, लेकिन मेरे लिए ये सिर्फ एक सूटकेस नही है,,, उससे भी बढ़कर है " सागरिका जी ने कहा


अपनी दादी को इस तरह बात कर, ऋतू को दादी से इस तरह उस सूटकेस के बारे में कहना अच्छा नही लगा इसलिए वो उन्हें कान पकड़ सॉरी बोलते हुए कहती है " माफ करना दादी,, आपको शायद मेरी बात बुरी लगी हो,,, लेकिन मैं भी क्या करू? आपने जो कहा वो बात मुझे थोड़ी अजीब लगी बस इसलिए मैंने कह दिया "


कोई बात नही,,, तू पूछ रही थी न कि मैं बारिश होने पर उदास क्यूँ हो गयी थी, चल बताती हूँ,, ध्यान से सुनना फिर तुझे समझ आ जाएगा कि बारिश और बरसात हर किसी के लिए खुशियाँ लेकर नही आती है


बेटा बात है उन दिनों कि ज़ब मैं तेरी ही उम्र की थी, हम एक गांव में रहते थे,,, जो कि एक खुशहाल गांव था,,, सब मिलझुल कर रहते थे,,, बहुत कम लोग ही शहर में जाकर बसे हुए थे बाकी को तो गांव ही अच्छा लगता था,,, और तो और शहर था भी तो बहुत दूर,,, मेरा एक भाई भी था जो मुझसे कुछ साल छोटा था हम सब की आँख का तारा था,,, मेरा पूरा बचपन हस्ते गाते सहेलियों के साथ खेल कर गुजरा


हम लोगो को भी सावन आने की बेहद ख़ुशी होती थी,,, बागो में झूले पड़ जाते थे,,, लाल हरी चूड़ियों से सब की कलाई भरी रहती थी,,, मेहंदी लगाते थे और बारिश में खेलते भी थे,,, हर साल बारिश के साथ थोड़ा बहुत नुकसान भी होता लेकिन सब मिलझुल कर अच्छे से उस नुकसान को पूरा कर देते थे


लेकिन एक बार की बरसात उस गांव पर केहर बन कर बरसी, वो ऐसी भयानक बरसात थी कि बस आसमान से पानी बरसे ही जा रहा था, नदी, तालाब पोखर, कुए सब पानी से भर गए थे,,,


बाढ़ के हालात बन गए थे,, सब लोग अपनी जान बचा कर भाग रहे थे,,, सरकार की तरफ से गांव में एलान लगा दिया गया था कि बस अपना जरूरी समान किसी बक्से या सूटकेस में भरकर अपने साथ ले आये, और अपनी जान बचाये


पूरा गांव पानी से भर गया था, चारो और त्राहि त्राहि ही नजर आ रही थी, उससे ज्यादा भयानक बरसात मैंने अपने जीवन में नही देखी थी और न ही कभी देखना चाहूंगी,,, लोगो के घर पानी में कागज की नाव की तरह बह रहे थे,,, साथ में लोग भी बह रहे थे


तू जानती है,,, मैंने अपनी आँखों से अपने छोटे भाई को उस सैलाब में बहते देखा था,, चाह कर भी बचा नही पायी, सब कुछ उस सैलाब में बह गया था, घर खेत सब कुछ, कुछ भी नही बचा था,, बस बचा था तो ये सूट केस,, और इसमें रखी कुछ चीज़े जिनके सहारे हम सबने आगे का सफर तय किया


हम लोग अनजान जगह जिसे शहर कहते है,, वहाँ आ गए,,, शुरू से पिता ने खेती किसानी की थी, उन्हें उसी की आदत थू,, शहर में तो सब कुछ बहुत अलग था,,, वो दिन हम सब की जिंदगी के बहुत बुरे दिन थे,,, अब गांव जाने का भी मन नही करता था क्यूंकि वही मंजर आँखों के सामने घूमता अपने भाई की चीखे सुनाई देती थी, वही त्राहि आँखों के सामने होती नजर आती,,, इसलिए न चाहते हुए भी शहर को ही अपना घर बना लिया


उस गांव की बस यादों में से एक ये सूट केस है,, जिसे कई बार मन किया फेंक दू,,, लेकिन बुरी यादों के साथ साथ कुछ अच्छी यादें भी तो जुडी थी उस गांव से जो इस सूट केस में रखी हुई है,,, बस उन्ही के चलते कभी फेंक नही पायी

. अब भी ज़ब कभी तेज बारिश होती है, या बरसात का मौसम आता है तो वही मंजर याद आ जाता है, और आँखे नम हो जाती है, सागरिका जी ने कहा नम आँखों


ऋतू अपनी दादी की उस भयानक बरसात वाली कहानी सुन बहुत भावुक हो जाती है, और दादी को गले लगा लेती है सही कह रही थी उसकी दादी बरसात हर किसी के लिए खुशियों की सौगात लेकर नही आती,

समाप्त....


प्रतियोगिता हेतु 

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2 Comments

Saroj Verma

05-Aug-2023 09:02 PM

बहुत ही सुन्दर कहानी,दादी के भाई को वो भयानक बरसात निगल गई 👍👍👍👍

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Gunjan Kamal

05-Aug-2023 08:26 AM

हमेशा की तरह शानदार प्रस्तुति 👌🙏🏻

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