अंक
एक बार अंक नौ को किसी बात पर गुस्सा आ गया और उसने जोरदार झापड़ अंक 8 को जड़ दिया। अंक 8 को बहुत बुरा लगा किन्तु वह कुछ कर नहीं सकता था, अंक नौ उससे बड़ा था लेकिन उसने अपनी झुंझलाहट अंक 7 पर निकाली और उसे एक थप्पड़ जड़ दिया। 7 ने 6 को मारा 6 ने 5 को मारा 5 ने 4 को मारा 4 ने 3 को मारा 3 ने 2 को मारा और 2 ने 1 को मारा। इस प्रकार सबने अपने से छोटे को थप्पड़ जड़ दिये।
लेकिन अंक 1 क्या करे ??
उसने एक क्षण सोचा और 0 को उठा कर अपने बगल में बिठा लिया।
अंक 1 जीरो को बगल में बिठा कर 10 बन गया।
अब वह 1- 9 अंकों में सबसे बड़ा बन चुका था।
उसे दहाई में तब्दील होते देख सभी अंक स्वयं को बड़ा बनाने के लिए एक-दूसरे का साथ देने लगे।
अंक 2 ने भी 0 को अपने बगल में बिठाया और 20 बन गया।
इसी तरह सब अंक 0 को अपने बगल में बिठाकर
बड़ा बनने लगे।
अंक 9 ने अपने बगल में 0 को बिठाया 90 बन गया किन्तु उसकी लालसा शान्त नहीं हुई साथ ही 0 का सहयोग उसके अहम् को चोट दे रहा था।
उसने 0 को हटाया अपने सहोदर भाई 9 को अपने बगल में बिठा कर 99 बन गया।
गर्वीली मुस्कान के साथ सब अंकों पर नज़र डाली कि उससे बड़ा कोई नहीं है, ना ही बन सकता है।
अंकों ने अपने सर झुका लिए क्योंकि अंक 9 की बात में सच्चाई थी। कोई उससे बड़ा नहीं बन सकता था।
शान्त स्वभाव का अंक 1 उसकी हरकत देख रहा था। उसे उसके 99 बनकर बड़े बनने पर आपत्ति नहीं थी बल्कि घमण्ड और स्वयं से छोटों पर रौब दिखाने पर आपत्ति थी।
उसके घमण्ड को चूर करने के लिए अंक 1 ने अपने साथ दो 00 बिठा लिए और 100 बन गया।
सैकड़ा का 100 बनते ही सब अंक 99 पर हंसने लगे। 99 बगलें झांकने लगा। नजरें नीची करलीं।
अंक 1 ने सबको समझाया, हमारी कीमत और महत्व एक-दूसरे का सहयोग करने में है। कौन छोटा है, उसकी तुच्छता बताने में नहीं!!
एक-दूसरे के प्रति सहयोग की भावना बनाए रखने से ही हम अपना महत्व दुनिया को बता सकते हैं, बड़ा बन सकते हैं। अकेले-अकेले हम सिर्फ इकाई के अंकों के अलावा कुछ भी नहीं हैं, 0 अनंत है वह हमारे साथ बैठ कर कीमत बढ़ा सकता है किन्तु हमारे साथ के बिना अर्थ हीन है। इसलिए हमें अपने साथियों के प्रति सहयोगात्मक दृष्टिकोण रखना चाहिए। एक-दूसरे का साथ देना चाहिए, तभी हम अपनी और 0 की कीमत दुनिया के समक्ष रख पाएंगे। अनन्तकाल तक हमारी सत्ता कायम रहेगी। हमारा महत्व सर्वोपरि होगा!!
उसकी बात सुनकर सभी अंकों को स्वयं की कीमत और सहयोग का महत्व अच्छे से समझ में आ गया। वे खुश होकर एक-दूसरे के गले लगने लगे।
सीख:- नफरत एवं घमंड नहीं बल्कि दोस्त बनना चाहिए।
धन्यवाद!
स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान)
Babita patel
24-Aug-2023 06:11 AM
nice
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HARSHADA GOSAVI
06-Aug-2023 11:34 AM
Nice
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Gunjan Kamal
06-Aug-2023 07:23 AM
बहुत खूब
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