वो भयानक रात
बहुत समय की बात है ,चंपानगरी में एक हलवाई रामू रहता था,उसकी एक पुत्री थी जिसे वो बहुत लाड करता था ,सुगंधा नाम था उसका ।बचपन में ही मां का साया उसके सर से छिन गया था ।
रामू ने पुनः विवाह नहीं किया ,उसे लगता था कोई भी स्त्री सुगंधा को सगी मां की तरह प्यार नहीं दे पाएगी।
रामू को शादी ब्याह ,मुंडन पर खाना बनाने के लिए बुलावा आता था तो हर जगह वो सुगंधा को भी साथ अवश्य ले जाता । सुगंधा उसके साथ रहती ,वो जो भी बनाता पहले सुगंधा ही चखती।
सुगंधा धीरे धीरे बड़ी हो रही थी,लेकिन उसने कभी भी नहीं सोचा कि पिता के साथ हाथ बंटाना चाहिए उसे तो बना खाना चखना और उसमें मीन मेख निकालना ही आता था।रामू भी कभी उसे कोई काम करने को नहीं कहता।
एक दिन रामू अपने बचपन के दोस्त के लड़के को लेकर घर आया। रघु के पिता की मृत्यु हो गई थी ,घर में और कोई था नहीं इसीलिए रामू ने अपनी दोस्ती का फर्ज समझ , रघु को घर ले आया।
रघु सुगंधा से दो साल बड़ा था,पिता की मृत्यु ने उसे समय से पहले बड़ा बना दिया था।वो रामू के काम में मदद किया करता,जबकि सुगंधा उसपर खेलने के लिए दबाव बनाती।रघु के आने से उसे कोई साथी मिल गया था।
समय कहां रुकता है ,दोनों जवान हो गए,और रामू बूढ़ा।बीमारियों ने धीरे धीरे जकड़ना शुरू कर दिया अब रघु ही ज्यादातर विवाह ,पार्टियों और दुकान में काम करता।
एक दिन रामू ने रघु को पास बुलाया और पूछा_"रघु सच सच बताना ,क्या सुगंधा तुम्हें पसंद है?
रघु ने शर्माते हुए आंख नीचे कर धीमे से कहा _हां।
रामू को पता था कि सुगंधा भी रघु को पसंद करती है ,और रघु से बेहतर दामाद कोई हो भी नहीं सकता।
उसने दोनों की शादी साधारण रीति से कर दी।
दोनों ही खुश थे।सुगंधा के दैनिक गतिविधि में कोई खास फर्क नहीं आया ,रघु ही घर में खाना बनाता ,और सुगंधा उसमें सदैव मीन मेख निकाला करती।
उधर महीने दो महीने बाद रामू भी भगवान के पास निकल लिए।
रघु चिड़चिड़ा होता जा रहा था ,घर_ बाहर दोनों उसे ही देखना पड़ता था ,जो उसके लिए कष्टदाई हो रहा था ,लेकिन सुगंधा को पति की हालत की परवाह नहीं थी।
एक दिन रघु का जन्मदिन था आज रघु का मन था कि सुगंधा उसके लिए खाना बनाए और प्यार मनुहार से खाना खिलाए।उसने सुगंधा से कहा _प्रिय आज तो मेरे जन्मदिन पर खाना तुम बना लो,फिर साथ मिलकर खाना खाया जाएगा । चलो अभी मंदिर चलते हैं।
अलसाई सुगंधा ,बाहर घूमने के नाम पर तुरंत तैयार हो जाती थी ,वो तुरंत तैयार हो आई ,लेकिन रघु से कहा _देखो जी !मुझसे ये खाना वाना नहीं बनने वाला।खाना तो तुम्ही बनाओगे।
रघु के चेहरे की खुशी पल भर में ही चली गई उसका चेहरा बुझ गया।वो मौन हो गया,पूरे रास्ते सुगंधा हंसती ,बातें करती रही लेकिन रामू के कानों में जैसे कुछ सुनाई ही नहीं दे रहा था।
मंदिर से आकर रघु खाना बनाने में जुट गया।खाना बनकर तैयार हुआ तो उसने दो थाली लगाई ।सुगंधा ने पनीर की सब्जी चखी ,और मुंह बिचकाते हुए कहा ठीक बनी है, पर नमक कम है।
रघु तो जैसे बारूद के ढेर पर बैठा ही था ,सुगंधा के बोलने भर ने आग लगाने का कार्य कर दिया।वो गुस्से से आग बबूला होता हुआ उठा और चिल्लाया_पागल औरत !बहुत सह चुका तेरे नखरे ,खुद को कुछ आता जाता तो है नहीं बस बैठी_ बैठी हुक्म चलाती है ,शादी हो गई पति को क्या अच्छा लगता है क्या नहीं ,कभी सोचा ।पति कभी थकता भी होगा कभी महसूस किया तुमने ।अब बहुत हुआ , मैं घर छोड़ कर जा रहा हूं।अब अकेली रहकर खुद खाना पका और खुद खा कर नुक्स निकाल समझी।
सुगंधा एक दम सन्न हो गई ,उसने कभी रघु को गुस्सा होते नहीं देखा था।वो कल्पना भी नहीं कर सकती थी इस परिस्थिति की।
रघु घर से बाहर निकल गया। सुगंधा को जब तक होश आया वो रोकने को दौड़ी , रघु मोहल्ले के मोड़ से गायब हो गया।
घर आकर वो चुपचाप बैठ गई ,उसकी आंखों से झर झर आंसू बह रहे थे।उसे बार बार यही लग रहा था ,रघु उसे डांट लेता ,उसपर गुस्सा हो लेता ,लेकिन...उसने तो घर ही छोड़ दिया ।
एक विश्वास था कि थोड़ी देर में वो आ जाएगा।
जिंदगी में पहली बार वो घर पर अकेली थी ,उसे बहुत डर लग रहा था । दोनों का दोपहर का खाना ज्यों का त्यों रखा था।
इधर रघु घर से गुस्से से चलते चलते जंगल में पहुंच गया।
थकान से चूर हो ,वो एक पेड़ के नीचे बैठ गया,और थोड़ी देर में निद्रा देवी ने उसे अपने आगोश में ले लिया।
आधी रात में उसकी नींद खुली तो उसने अपने आप को रस्सी से बंधा पाया।
ये क्या?ये लोग कौन हैं ?वो सोच ही रहा था कि अचानक एक मोटा , गैंडे की तरह व्यक्ति आया जिसका चेहरा अत्यंत काला और भयानक था,उसके शरीर में जगह जगह खून रिस रहे थे।
उसने कहा _उठ जल्दी । आज पिशाच राज के घर शादी है ,और लड़के के घर वालों ने मनुष्य जाति के हलवाई से खाना बनवाने की शर्त रखी थी,सुना है तुम खाना बहुत अच्छा बनाते हो ........! और वो पिशाच जोर से हंस पड़ा, उसके पीछे और भी कई टेढ़े मेढे शरीर वाले पिशाच दिखाई दिए जो जोर जोर से हंस रहे थे।
चलो इसे जल्दी पिशाचराज के पास चलो।
रघु घबरा गया ,उसकी हालत दीन हीन उस बकरे की तरह हो गई जिसकी बलि चढ़ने वाली हो।
वो बकरी की भांति मिमियाया_ छोड़ दो मुझे , कृप्या मुझे छोड़ दो ....।
उसकी आवाज़ उन पिशाचों के शोर में दब कर रह गई।वे लोग उसे घसीटे लिए जा रहे थे।
थोड़ी दूर में उसने देखा खाना बनने की तैयारी की जा रही थी ,बड़े बड़े बर्तन लिए कई पिशाच लगे हुए थे।वहीं पिशाच रानी उन्हें निर्देशित कर रही थी।
वो लोग रघु को पिशाच रानी के सामने ले गए।
रानी ये देखिए इस मनुष्य हलवाई को हमलोग ले आए हैं_मोटे पिशाच ने कहा।
पिशाच रानी ने लाल लाल आंखों से घूरते हुए कहा _ ये बना तो लेगा ! सुनो अगर तुम हमारा खाना अच्छा नहीं बना पाओगे तो हम तुम्हें मार डालेंगे।
तब तक पिशाच राज भी आ गए ,उसने रघु को देखकर ढेर सारे पकवान जो लड़के वालों ने बताए थे, बनाने को बता दिया।
रघु को डर से पसीना आ रहा था ,इन भयंकर पिशाचों के बीच कैसे फंस गया ,जिंदगी में एक बार क्रोध आया ,उसने घर छोड़ने का फैसला क्या लिया की बड़ी मुसीबत ही मोल ले ली।
मरता क्या न करता,उसने बड़े मनोयोग से लेकिन दबाव में खाना तैयार किया ।
बारात लेकर लड़के वाले आए ,खाना परोसा गया,लड़के वालों को खाना खूब पसंद आया ।सब तारीफ कर रहे थे ,ये सुनकर रघु की जान में जान आई ,अब उसे पूर्ण विश्वास था की उसे मुक्त कर दिया जाएगा।
लेकिन ये क्या ? उसपर तो वज्रपात ही हो गया ,जब उसने सुना कि दूल्हे के पिता ने पिशाचराज से ये कहा_आप हमें उस मानव हलवाई को भेंट स्वरूप प्रदान करें।
पिशाच रानी और उसकी पुत्री बहुत प्रसन्न हुई,लेकिन रघु थर थर कांपने लगा,उसे पता था अगर वो इनके पास रह गया तो कभी अपनी सुगंधा के पास जा न सकेगा उपर से ये पागल कब उसे मार कर खा लें उसका भी कोई भरोसा नहीं।
वो जोर जोर से ईश्वर को याद करने लगा ।पता नहीं कितनी बार हनुमान चालीसा का उसने पाठ किया ।वो देख रहा था कि, पिशाच उसकी ओर बढ़े आ रहे थे।उसके पैर भागना चाहते थे लेकिन वो जैसे धरती से चिपक चुके थे।
अचानक एक रोशनी दिखाई दी ,और सब कुछ गायब ।उसने आंखें खोली सामने कुछ नहीं था।उसका शरीर पसीने से तर बतर था ।उसने अपने आप को पेड़ के नीचे लेटा पाया ।
सुबह की लाली उसके मुंह पर पड़ रही थी।वो आश्चर्य से भर गया !वो सब क्या था जो उसने पूरी रात झेला ।
वह तेजी से उठा और अपने घर की ओर भागा ।सुगंधा इंतजार में पलके बिछाए ,पूरी रात नहीं सोती थी ।उसने जैसे कदमों की आहट सुनी सिर उठा कर देखा सामने रघु खड़ा था।दोनों एक दूसरे से लिपट गए।अश्रु धारा दोनों तरफ से बहने लगी।थोड़ी देर बाद सुगंधा ने चुप्पी तोड़ी,उसने कहा _ आपके जाने के बाद मुझे अहसास हुआ कि मैं कितनी लापरवाह और बुरी औरत हूं ,जिसे अपने पति की इच्छा , अनिच्छा की परवाह नहीं है।आज से मैं ही आपको खाना बना कर खिलाऊंगी।
रघु बोलना तो चाहता था कि,तुम खाना बनाओ या नहीं ,मैं ही खाना बनाऊंगा और तुम्हें कभी छोड़ कर नहीं जाऊंगा,लेकिन चुप रहा।
इस घटना के बाद दोनों की जिंदगी बदल गई ,उनका प्यार ,समर्पण से उनकी जिंदगी आनंदपूर्ण हो गई।
बाद में रघु को पता चला कि वो जिस जंगल में चला गया था ,वो जंगल मायावी था।
समाप्त
madhura
19-Aug-2023 07:07 AM
awesome
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KALPANA SINHA
11-Aug-2023 10:22 AM
Beautiful story
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Sangeeta singh
11-Aug-2023 06:30 PM
Thank you🙏🙏
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Sangeeta singh
18-Aug-2023 04:37 PM
Thanks🙏
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Milind salve
11-Aug-2023 07:54 AM
Nice
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Sangeeta singh
11-Aug-2023 06:31 PM
आभार
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