आजादी

आजादी


अपनी आजादी को तुमने बहुत सस्ता मान लिया
कितनों के सर कटे, कितनो ने बलिदान किया।

कितने झूले फांसियों पे, कितने काला पानी गए
तब कहीं जा कर फिरंगी ने वतन आजाद किया।

जलियां वाला बाग वो, खेली थी खूं की होलियां
मां बहन भाई निहत्थे झेले सीने पे अपने गोलियां।

भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव ऐसे कई नाम थे
नेताजी, आजाद, सावरकर सब के ही बलिदान थे।

नहीं पीछे रहीं थी मां भारती की बेटियां, लक्ष्मीबाई
दुर्गावती, सरोजिनी सरीखी थी हजारों देवियां।

वर्षों के संघर्ष से तप कर के आजादी मिली
तब कहीं जाकर के बेड़ियां मां की कटी।

है कसम तुमको न भूलना उनके उपकार को
हर समय याद रखना आजादी के इस उपहार को।।

आभार – नवीन पहल – १५.०८.२०२३ 🇮🇳🇮🇳

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