लेखनी प्रतियोगिता -19-Aug-2023 प्रियतम बिन लगता सूना
प्रदीप छंद
शीर्षक-प्रियतम बिन लगता सूना
प्रियतम कैसे सहूॅं जुदाई, आए हैं त्यौहार रे।
जीवन लगता आज अधूरा, उजड़ा मम संसार रे।।
डाल- डाल पर कोयल कूके, सखी बाग में झूलती।
देख- देख बढ़ती व्याकुलता, सुध- बुध में अब भूलती।।
रस्ता तेरा आज निहारूॅं, कैसे हो श्रृंगार रे।
प्रियतम कैसे सहूॅं जुदाई, आए हैं त्यौहार रे।।
खिलती कुसमित कलियाॅं देखो, तुमको आज पुकारती।
करती हूॅं मैं तुम्हें इशारा, तेरी राह निहारती।।
आऍंगे प्रियतम दिल कहता, बहे उम्मीद धार रे।
प्रियतम कैसे सहूॅं जुदाई, आए हैं त्यौहार रे।।
बागों में अब झूले सजते, कह हरियाली तीज है।
आओ प्रीतम तुम अब मेरे,उगे प्रेम के बीज है।।
संग- संग हम झूला झूले, करें बहुत बतियार रे।
प्रियतम कैसे सहूॅं जुदाई, आए हैं त्यौहार रे।।
लेखिका
प्रियंका भूतड़ा प्रिया ✍️
Shashank मणि Yadava 'सनम'
20-Aug-2023 08:35 AM
बेहतरीन अभिव्यक्ति
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