Tania Shukla

Add To collaction

हार्टलेस

अभी कैसी है वो लड़की , मिस रोज़ी देवाशीष ने मिस रोज़ी से पूछा

अभी उसे होश नहीं आया है सर बाकी प्लस और हार्ट बीट सही चल रही है, इंप्रूवमेंट हो रही है हो सकता है रात तक होश आ जाए उसे ।

चलो ठीक है मिस रोज़ी ,,, स्टाफ को बता कर जाना आप, उसका ध्यान रखें मैं अब निकलता हूं, इससे पहले की दादी की कॉल आनी शुरू हो जाये.. देवाशीष ने अपना बेग उठाते हुवे कहा..

ठीक है डाक्टर साहब, मिस रोज़ी ने मुस्कान के साथ कहा और केबिन से बाहर चली गयी..

देवाशीष आज अपने घर नहीं जाना चाहता था, उसने कार को अपने पुराने ठिकाने की तरफ मोड़ दिया जब वो उदास होता था तब जाता था, घाट की अनगिनत सीढ़ियां जो उसके जीवन के उतार चढ़ाव जैसी ही उसको लगती थी, कुछ अपना पन होता था वहाँ..

तुम कहां हो सैफू ?.. मैंने कहाँ कहाँ तुमको ढूँढा है,..दूर देखते हुए उदास आंखो से जाने कब देवाशीष की आंखे नम हो आई

देवा, देवा ,,,, तुम कहां हो देखो मैं अब थक गई हूं तुम बाहर आ रहे हो या मैं घर चली जाऊं देखो मेरे पांव भी दर्द करने लगे है बोलते हुए रूठ कर वहीं बैठ गई… और उसका यू रूठना भला देवाशीष कैसे देख सकता था वो तुरन्त बाहर निकल आया

थपी…. हाथ लगाते हुए सैफाली जोर जोर से हंसने लगी

क्या यार देवा, ये तुझे हर बार बेवकूफ बना देती हैं और तू फिर भी इसकी बातो में आ जाता है

सैफु की इस हसी के लिए तो मैं बार बार बेफकुफ बनने को तैयार हूं कहते हुए मुस्कुराने लगता देवा भी…. अपने बचपन की यादों में देवा ऐसा खो गया कि उसे आभास ही नहीं हुआ कि वह यहां अकेला बैठा मुस्कुरा रहा था और आस पास के आते जाते लोग उसे अजीब नजरो से देख रहे थे,..

तभी देवाशीष का मोबाइल वाइब्रेशन करने लगा.. फोन की घंटी ने देवाशीष को वापस वर्तमान में ला कर खड़ा कर दिया जहां न, सैफाली थी और न ही बचपन के दोस्त .....

हेल्लो… हां दादी… आ रहा हूं बस हां थोड़ा काम आ गया था रास्ते में हूं… आता हूं थोड़ी देर में ।

दूसरी तरफ से दादी की आवाज सुन कर उसे याद आया कि वो कितनी देर से यहां बैठा है और वहां घर पर सब उसका इंतजार कर रहे होगे, देवाशीष अपनी यादों को समेट चल दिया घर की तरफ

………..

सोनल वापस होटल आ गई थी पर कुछ तो था जो उसको बेचैन कर रहा था, अर्पित की नज़रे अभी तक उसका पीछा कर रही थी उसकी नज़रों में वो खुद भी तो एक अजीब सा खींचाव महसूस कर रही थी ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था उसके साथ.. उसने तस्वीर को एक नज़र देखा.. अपनी खुद की तस्वीर उसे कभी इतनी प्यारी नहीं लगी थी जितनी की उसे अब यह लग रही थी तस्वीर के एक किनारे पर सलीके से नाम लिखा था

अर्पित,..

और उसी के नीचे उसका फोन नंबर भी लिखा हुआ था ।

सोनल ने अपना हाथ उस नाम पर रखा और धीरे धीरे उसे सहलाया उसे बहुत सुकून मिला, पर तुरन्त ही उस ने हर एक ख्याल को अपने जेहन से निकाल बाहर किया ।

उसके घर में प्यार करना क्या उसके बारे में सोचना भी गलत था उस पर वो तो लड़की थी, भैया ने कितना कोशिश की थी अपने प्यार को पाने के लिए… वो चाहते थे पापा और दादी मान जाए तो अपने प्यार के साथ जीवन बीता सक… मगर पापा ने साफ साफ कर दिया कि जिसको जाना है हमेशा के लिए इस घर से निकल जाओ यहां कोई नहीं आ सकता मेरे परिवार में मेरी इजाजत के बिना…

भैया वहीं के वहीं रह गए आज तक अकेले जीवन बिता रहे हैं ना अपना प्यार भूल पाए हैं और ना किसी और को अपना पाए हैं । और सब ये बात जानते हैं लेकिन ना जानने का नाटक करते हैं, तो ऐसे में उसके लिए परिवार वालो का क्या नजरिया होगा बहुत अच्छे से जानती थी सोनल

सोनल अपने दिमाग़ से उस चेहरे को निकालना चाहती थी जो बार बार उसके सामने आरहा था, अजीब होता है ये भी, जब किसी के बारे में नहीं सोचना चाहो तब वो सबसे ज्यादा याद आता है,,.. रात भर सोनल के मन में विचारो की आंधी चलती रही और वह अपने आने वाले कल के बारे में सोचती रही..

अभी तो प्यार नाम का मतलब भी नहीं जाना था पर अपने दिल को उसने किसी बंद संदूक में ताला लगा रख दिया था और फैसला कर लिया था के वो देखेगी भी अगर वो लड़का उसके सामने आ गया तब भी ।

अगले दिन सुबह…

मैडम का दोपहर तक का समय बाहर पड़ती बर्फ़ में सब के साथ एन्जॉय करने का मन था और फिर खाना खाने के बाद वापस अपने शहर लौट आने का सोच रखा था ताकि रात होने से पहले सब अपने अपने घर लौट जाए । होटल से बाहर निकलते ही ऊंची ऊंची पहाड़ियों पर गिरती सफेद सफेद बर्फ रूई के फाहे जैसी लग रही थी

कितना मनमोहक दृश्य है यह काश मीनल भी मेरे साथ होती तो कितना अच्छा लगता उसे भी…. सोनल एक बेंच पर बैठी गिरती बर्फ़ और उसमे अठखेलियां करती अपनी सहेलियों को देख सोच रही थी ।

आप नहीं खेल रही बर्फ़ में… देखिए कितना सुन्दर नजारा है पर आप से कम ....किसी की आवाज को अपने पास सुन चौक गई सोनल नजर उठा आवाज की तरफ देखा तो सामने अर्पित था

आप यहाँ ....???

जी, बंदा हाजिर है आपकी खिदमत में… झुकते हुए बड़े ही फिल्मी अंदाज में कहा अर्पित ने ,,, उसकी इस अदा पर मुस्कुराए बिना नहीं रह पाई सोनल ,,, पर आप यहां आए क्यू हो और यहां का एड्रेस कैसे मिला

ढूंढने से तो भगवान भी मिल जाता है फिर आप तो हो ही इतनी खूबसूरत…

ओह…. तो तुम यहां मखन लगाने आए हो मुझे

नहीं तो मैं तो सच बताने आया था…. आपको मखन लगाना लग रहा है तो कोई बात नहीं मैं चला जाता हूं झूठ मूठ ही अर्पित ने मुड़ते हुए कहा

नहीं नहीं ऐसी कोई बात नहीं है, सोनल के मुँह से जल्दी से निकल गया.. उसका दिमाग़ उसको यहाँ से चले जाने का बोल रहा था लेकिन दिल वहाँ से हिलना भी नहीं चाहता था,

तो मैं बैठ जाऊं… कहते हुए बैठ गया अर्पित

आप के हाथो में तो सचमुच जादू है बहुत सुंदर तस्वीर बनाई आपने

तुम्हे पसंद आई यह बड़ी बात है मेरे लिए और तुम्हारी सादगी और खूबसूरती को देख कर कोई भी शायर या चित्रकार… ख़ुद ब खुद बन जाए ।

दोनों की बातें चल ही रही थी कि मैडम भी वहीं आ गई अरे , अर्पित तुम यहां उन्होंने उधर आते हुवे पूछा,

   16
0 Comments