सौतन
प्रतियोगिता हेतु रचना
सौतन
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वंशी तुम मेरी सौतन हो, क्यों कान्हा पर हक़ जमा बैठीं।
अधरों पर कब्जा किया है क्यों अपना अधिकार दिखा बैठीं।।
कान्हा तो केवल मेरा है मेरी ही तान बजाता है।
अधरों पर तुम रहती सवार पर वो राधा की तान सुनाता है।।
सौतन बन कर तुम क्यों आई काहे कान्हा को छीन लिया।
मेरा अधिकार है अधरों पर क्यों तुमने कब्जा वहां किया।।
पर सोंच रही हूं मैं वंशी तुम सौतन हो बहना समान।
जब तुम अधरों पर आती हो कान्हा भी सुनाता तभी तान।।
जब तक अधरों पर ना आती कान्हा भी रहता है उदास।
तेरे अधरों पर आते ही मिट जाती है उसकी भी प्यास।।
मैं सौतन मान कर ऐंठ गई तुमसे मैने ले लिया बैर।
जब तक मैं तुम्हें नहीं सुनती कान्हा संग करती नहीं सैर।।
आओ हम मिल-जुल साथ रहें कान्हा का प्यार अपार मिले।
अधरों पर तुम रहना सवार बाहों का मुझको हार मिले।।
विद्या शंकर अवस्थी पथिक कानपुर
Punam verma
26-Aug-2023 08:27 AM
Nice
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Abhinav ji
26-Aug-2023 08:08 AM
Very nice
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Reena yadav
26-Aug-2023 06:57 AM
👍👍
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