तृष्णा
तृष्णा
तृष्णा,चैन लेने नही देती है हमें
मन की बेचैनियां बढ़ाती है
मैं सच कहता हूं सज्जनों
रात में भी सोने नही देती है हमें।
शाम ढलने के बाद रात होती है
रात होने के बाद लोग सो जाते है
दिनभर की थकावट दुर करते है
पर तृष्णा, हमें रुलाती है।
क्या सुनाऊं मैं,उस पल की कहानी
जब तृष्णा होती है बलवती
आंखों में होती है सिर्फ दुःख के आसूं
और दिल में छाई रहती है वीरानी।
यदि हृदय से किया परिश्रम तो
पत्थर में भी फूल खिलता है
और स्वयं को हीरा बनाना है तो
तृष्णा से दूर रहना ही होगा हमें।
किस्मत के सहारे बैठने वाला
कुछ कहां भला कर पाता है
अगर दुनिया जीतने की तृष्णा है तो
संघर्ष में खुद को जलाना होगा।
दो दिन बची है जिंदगी
समय का पहिया बोल रहा है
तृष्णा से तुम दूर रहो प्यारेँ
नही तो पछताओगे।
नूतन लाल साहू नवीन