Tania Shukla

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हार्टलेस

जी मैम ,.. वो आपने बताया था ना कि आज आप लोग चले जाओगे तो मैं भी मिलने चला आया, और कई लोगों की तस्वीर रह गयी थी मेरे पास वो भी लोटानी थी मुझे, अपने शहर के लोग मिलते हैं तो ऐसा लगता है जैसे कोई अपना ही मिल गया हो,,.. सोनल की तरफ देखते हुए अर्पित ने कहा ।

हां यह तो सही कहा तुमने अर्पित.. वैसे तुम कब जाते हो अपने घर पर.. मैम ने उससे पूछा,

यह सुन अर्पित के चेहरे का रंग कुछ देर के लिए उड़ गया पर फिर खुद को संभाल लिया और बोला, जिसे मेम ने और सोनल ने महसूस कर लिया था, के कोई बात थी जिसकी वजह से वो एक दम रुक गया था, शायद वो इसके बारे में बात नहीं करना चाहता था, थोड़ी देर सोच कर उसने बोला, जल्दी ही आऊंगा अब… मुझे लगता नहीं ज्यादा दिन मैं अब यहां रह पाऊंगा मैम आप सब अपना फोन नंबर दे दीजिए ताकि मैं वहां आऊं तो सब से मिल सकूं,

सोनल समझ रही थी कि अर्पित यह उस से नंबर लेने के लिए कर रहा था मगर वी अपना नंबर नहीं देना चाहती थी उसको पता था अपनी ज़िन्दगी के बारे में ।

वो वहाँ से उठ कर अंदर चली गई, वो उठना नहीं चाहती थी, लेकिन उसको उठना पड़ा,

मैडम ने अपना नंबर अर्पित को दे दिया कि कभी आए तो उनको फोन कर ले बाकी सब लोग तो कॉलेज में मिल ही जायेंगे, अर्पित के पास अब कोई चारा नहीं रह गया था वो उदास आंखो से अंदर की तरफ देखते हुए चला गया,

सोनल दूर अपने कमरे की खिड़की से अर्पित को जाते हुए देखती रही और वो चाह कर भी इसमें कुछ नहीं कर सकती थी ।

चलो लड़कियों लंच का समय हो गया है लंच के बाद हम सबको निकलना है, मैम सबको समझा रही थीं, लड़कीयां अभी भी फोटो और सेल्फी लेने में लगी हुयी थीं, सब खिलखिलाती हुयी अंदर आ गए.. लंच के बाद शाम चार बजे उनकी बस आ गई और सब के सब अपनी अपनी सुनहरी यादों को समेट कर घर की तरफ चल दिए सबके चेहरों पर एक उदासी थी, नहीं पता था दोबारा कब आना हो लेकिन घर तो जाना ही था ।

सोनल ने ख़ुशी से घर में कदम रखा, वो चहकते हुवे सबसे मिली, दादी के पैर छुवे.. देवाशीष के पिता सोनल को देख आश्सवत हो गए, आ गई ,.. चलो अब हो गया शौक पूरा , अब घर के काम काज में मन लगाना रोज रोज कहीं नहीं भेजा जाएगा तुमको… दादी ने साथ ही नसीहत दे दी थी लेकिन आज सोनल को बुरा नहीं लगा था ।

जी दादी.. बिल्कुल सही कहा आपने, इतना ही कहा सोनल ने, वो अभी अपना मूड खराब नहीं करना चाहती थी,

उसकी आवाज़ सुनकर उसकी माँ भी वहाँ चली आयी, और मीनल भाग कर आयी और उसके गले मिली जैसे वो 2 दिन के लिए नहीं 2 साल के लिए गयी थीं और अब वापस आयी थी, सोनल उसको जानती थी के मीनल कॉलेज में थीं लेकिन अभी भी बहुत बचपना था उसमें..

वाउ दी, आप आ गई कैसा रहा आपका टूर, मस्त था ना, मुझे पिक दिखाओ ना वहा की, मीनल से अब सब्र नहीं हो रहा था वो सुबह से ही ख़ुशी से घूम रही थी के सोनल आ जायेगी आज, हां मीनल, रुक तो थोड़ी देर में दिखाती हूं, अच्छा ऐसा कर यह फोन तू रख और देख ले पिक…मीनल को फोन पकड़ा अपने कमरे में चली गई सोनल,

लो तुम पहले चाय पियों, सरस्वती ने कमरे में आते हुए कहा ओह मेरी प्यारी मां ,आपको कैसे पता की मुझे अभी चाय की तलब लगी थी हां तो मां हूं तुम्हारी , मुझे नहीं पता होगा तो किस को पता होगा फिर कह कर सोनल के सिर पर प्यार से हाथ फेरने लगी, मां , सोनल भावुक हो सरस्वती के गले लग गई

बता कैसा रहा तेरा भ्रमण, बहुत अच्छा रहा मां, बहुत सुंदर जगह थी काश हम सब साथ में जाते वहाँ, आप देखना मां एक ना एक दिन मैं आपको और मीनल को लेकर जरूर जाऊंगी

यह देखो मां… सोनल ने अपने बैग में से अर्पित की बनाई तस्वीर निकाली और दिखाने लगी वाउ, अमेजिंग, सो सो ब्यूटीफुल, सरस्वती के देखने से पहले ही मीनल ने आ कर तस्वीर को अपने हाथ में पकड़ लिया और खुश होते हुए तारीफ करने लगी ।

मुझे देखने तो दे मीनल, लो मां देखो कितनी सुंदर बनाई है किसने बनाई दी यह तस्वीर,

वो वहां शिमला में हम घूमने गए थे तो बस वही एक लड़का चर्च के बाहर बैठा बना रहा था सब लड़कियां ने बनवाई तो मैने भी बनवा ली ।

सोनल ने यह नहीं बताया कि अर्पित ने उस से बिना पूछे ही उसकी तस्वीर बनाई है और इस तस्वीर के उसने पैसे भी नहीं लिए थे, नहीं तो मां के मन में बहुत से सवाल आते और वह उन सवालों का जवाब क्या देती, घर में कोई और सुन ले तो बवाल ही मच जाता ।

ठीक है बेटा कोई बात नहीं, तुम घूम कर आयी बहुत अच्छा लगा, तुमको खुश देख कर ख़ुशी हो रही है, बस कभी कोई ऐसा काम मत करना कि तेरे पापा को शर्मिंदा होना पड़े ।

जी मां, बिल्कुल सोनल ने कहा,

मीनल सोनल से वहां के बारे में बातें करने लगी, सोनल उसको बता रही थी के वो लोग कहाँ कहाँ पर गये, किस किस जगह फोटो लीं और क्या क्या मिला था खाने में,

सरस्वती उनको देख रही थी, और अपनी दोनों बेटियों को देख कर मन ही मन बस यही दुआ कर रही थी कि उनके जीवन में हमेशा खुशियां यू ही रहें कभी कोई दुख उनके पास तक न आए और ऐसा और ऐसा तभी हो सकता था जब उनको उनकी ज़िन्दगी में सही जीवनसाथी मिलें ।

सुबह के पांच बजे थे कि अचानक देवाशीष के मोबाइल पर अनजान नंबर से से कॉल आया, फ़ोन के वाइब्रेशन को सुनकर देवाशीष को सुबह-सुबह अच्छा नहीं लग रहा था एक तो रात को वैसे ही बहुत मुश्किल से सो पाया था उस पर इतनी सुबह किसी का फोन आना देवाशीष को अच्छा नहीं लगा वो पूरी तरह से नींद में था, उसकी ऑंखें खुली भी नहीं थी..

एक बार तो उसने फोन साइलेंट कर दिया और सो गया लेकिन तुरंत ही दोबारा फोन वाइब्रेशन करने लगा थक हार कर मजबूरी में देवाशीष को फोन रिसीव करना ही पड़ा, उसने नींद भरी आवाज़ में कहा, हैल्लो कौन..? हेलो, डॉक्टर साहब मैं हॉस्पिटल से पंकज बोल रहा हूं आपने कल जिस लड़की का ऑपरेशन किया था उसको होश आ गया है और वह पागलों जैसी हरकतें कर रही है बार-बार बाहर भागने की कोशिश कर रही है उसके जख्मों में भी खून आने लगा है यहाँ हॉस्पिटल में कोई डॉक्टर भी नहीं हैं,... प्लीज आप आ जाइए एक बार मुझे समझ नहीं आ रहा कि अब मैं क्या करूं?

नर्सिंग स्टाफ पंकज की बात सुनकर देवाशीष तुरंत खड़ा हो गया, उसको लगा नहीं था के इस समय हॉस्पिटल से कॉल होगी.. हॉस्पिटल जाने के लिए तुरंत खड़ा हो गया, रात की ड्यूटी के लिए अलग से हॉस्पिटल में डॉक्टर थे मगर वह केस उसका था तो उसको जाना ही पड़ेगा, उसने इतनी सुबह सुबह किसी को उठाना उचित नहीं समझा, वो कॉफ़ी हॉस्पिटल में पहुँच कर पी लेगा, उसने यहीं सोचा और वह चुपचाप जाने लगा मगर जैसे ही वो बाहर निकला देखा दादी बाहर इस समय मंदिर से वापस लोट रही थीं..

देवा,.. कहां चला इति सुबह-सुबह, आज मंदिर जाने का ख्याल आ गया क्या.. उन्होंने कहा

प्रणाम दादी.. हॉस्पिटल से कॉल आया है एक मरीज की हालत ठीक नहीं है मुझे जाना ही पड़ेगा थोड़ी एमरजेंसी है दादी..

अरे, दूसरा डॉक्टर है ना वहां, वह देख लेगा

हां दादी, डॉक्टर तो है पर वह मेरा ही पेशेंट है तो मुझे ही उसको संभालना होगा, अच्छा बाकी बातें आ के करूंगा अभी मुझे देर हो रही है.. देवाशीष ने जल्दी से kaha,

ठीक है, ठीक है, आराम से जाना और नाश्ते के टाइम तक लौट आना दादी ने कहा,

ठीक है दादी जी कहता हुआ देवाशीष अपनी कार स्टार्ट कर के हॉस्पिटल की तरफ चल दिया वह सोच रहा था क्या सच में ही वह वही लड़की है जो उस दिन ब्रेड लेकर भाग रही थी या फिर यह मेरा वहम है आखिर कौन है वह लड़की?? उसके घर वालों ने अभी तक उसकी खोज खबर क्यों नहीं ली?!

क्या सच में वह पागल है,,, माना कि पागल है फिर भी उसका घर परिवार कुछ तो होगा इंस्पेक्टर साहब को फोन करके पूछना पड़ेगा कि उसके परिवार के बारे में कुछ पता चला कि नहीं??? अपने ही अंतर्मन के सवालों में उलझा देवाशीष हॉस्पिटल के दरवाजे पर आकर रुका,..

वह जैसे ही रूम नंबर सोलह की तरफ बढ़ा, उसको चिल्लाने की आवाज़ सुनाई दी,..

मुझे जाने दो,,,, मेरी बेटी मेरा इंतजार कर रही है मां..मैं आ रही हूं मां.. नहीं नहीं तुम नहीं जा सकती मैं आ रही हूं आरु...... आरू,.. प्लीज

दरवाजे तक उसके जोर-जोर से चीखने चिल्लाने की आवाज आ रही थी.. उसकी आवाज सुन देवाशीष बेचैन हो गया यह आवाज कुछ जानी पहचानी क्यों लग रही थीं, आखिर कौन है लड़की, सोचता हुआ देवाशीष अंदर कदम बढ़ाने लगा

जहां एक दर्दनाक सच उसका इंतजार कर रहा था।

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1 Comments

Zakirhusain Abbas Chougule

27-Aug-2023 08:04 AM

Nice

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