Tania Shukla

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हार्टलेस

देवाशीष ने जल्दी जल्दी कदम बढ़ाए तो सामने ही वो स्टाफ का लड़का मिल गया जिस ने उसे फोन किया था अच्छा हुआ सर आप आ गए वोह लड़की तो किसी की बात ही नहीं मान रही, लगातार बाहर भागने की कोशिश कर रही हैं और उसने अपने हाथ से ड्रिप भी हटा दी है उसके घाव में से खून भी आने लगा है,.. उस लड़के ने परेशान होते हुवे कहा,..

तो उसे नीद का इंजेक्शन दे देते कमरे में आते आते देवाशीष ने बोला,..

उसने जैसे ही कमरे में कदम रखा सामने देखा कि सामने उस लड़की को उसके दो दो आदमियों ने पकड़ रखा था और वो फ़िर भी उठने की कोशिश कर रही थी,

"आप शांत हो जाइए मैं आपको ले चलता हूं " देवाशीष ने आगे बढ़ते हुवे कहा, उसके इतना कहने पर वो लड़की घूमी तो उसे देख कर देवाशीष का पूरा दिमाग घूम गया, उसके चेहरे से अब पट्टी उतर गयी थी और बस हल्की खरोच नज़र आ रही थीं,..

उसने जैसे ही उसके चेहरे को देखा,, उसे ऐसा लगा कि जैसे उस कमरे में भूकंप आ गया हो,.. एक बार को वो अपने चेहरे को शीशे में नहीं पहचान सकता था पर इस चेहरे को कैसे नहीं पहचानता.. देवाशीष पथ्थर की तरह सख्त हो गया, वो वहीं जम गया था, जब उस लड़की ने अपनी मोटी मोटी आखों से देवाशीष की आंखो में देखा तो वो अंदर तक हिल गया भला वो इन आखों को कैसे भूल सकता था,

शेफाली….. तुम… तुम यहां, नहीं.. ये सच नहीं है

इस हालत में ,,, कैसे ??

देवाशीष को किसी बात की फ़िक्र नहीं थी, ना ही ये के उसका स्टॉफ उसको देख रहा था, ना ही ये की दुनिआ क्या बोलेगी, वो वहीं ज़मीन पर बैठ गया, उसका दिमाग़ अंधेरे में जा रहा था,..

आश्चर्य की वजह से देवाशीष को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करें, एक स्टॉफ ने उसको आगे बढ़ कर उठाया और बराबर में कुर्सी पर बिठा दिया, शायद वो समझ गये थे,

शेफाली भी शांत थी और सामने देख रही थी, जिन लोगों ने पकड़ा हुआ था वो थोड़ा सा दूर खड़े हो गये..

थोड़ी देर में दिल को शांत होने पर देवाशीष ने शेफाली को अपने हाथो में पकड़ते हुए कहा मगर शेफाली को कहां याद था कि वह वहां क्यू और कैसे आई

मेरी बेटी ,,, कहां है मेरी बेटी शेफाली ने गरजते हुवे कहा, देवाशीष ने उसके चेहरे को देखा उसने बिल्कुल पहचाने के कोई हाव भाव नहीं दिखाए थे, वो बस बार बार यही बोल रही थी

नर्स इंजेक्शन लाओ जल्दी,.. देवाशीष ने कहा नर्स से इंजेक्शन ले कर देवाशीष को दिया जिसने ने शेफाली को लगाया तो कुछ डर में ही उसे नीद आ गई ।

शेफाली को बेड पर लेटा देवाशीष वहीं बैठ गया

तुम सब बाहर जाओ मैं शेफाली के पास ही रहूंगा अभी सर आप क्या इनको जानते है ? नर्स के इस सवाल पर देवाशीष ख़ुद विचलित हो गया कि क्या वाकई यह वहीं शेफाली है जिसे वो जानता था

हां ,,, यह मेरी बचपन की दोस्त है, कहते हुए शेफाली के बालों से हाथ फिराने लगा और उसके आँखों से आँसू तपकने लगे, वो बेचैनी से बोला, तुम सब जाओ मुझे इसके साथ अकेले रहना है

सब बाहर चले गए और देवाशीष न जाने कब पहुंच गया अपने बचपन के दिनों में .......

कोलकाता के एक ही मोहल्ले में ही तो दोनों का परिवार एक साथ रहता था शेफाली के एक बहन ओर थी जो उस से बड़ी थी शेफाली की मम्मी और देवाशीष की मम्मी दोनों ही बहुत अच्छी सहेलियां बन गई थी, इनके घर बनारसी पकवान बनते तो उनके घर पहुंच जाते और उनके यहां का देवाशीष के घर हां पिता जी को तब भी उनसे कोई खास मतलब नहीं था

वो तो उनके घर का कुछ खाना तो दूर पानी भी नहीं पीते थे वो लोग मच्छी भात जो खाते थे और पिता जी ठहरे शुद्ध शाकाहारी, मां को भी कई बार डांट चुके थे कि उनके घर के बर्तन हमारे घर और हमारे बर्तन उनके घर न जाने दिया करो इसका भी समाधान निकाल लिया था मां ने, उन्होंने कुछ बर्तन अलग ही रख दिए थे ताकि बाकी बर्तन शुद्ध रहे ।

तब बनारस में खेती बाड़ी और कारोबार दादा जी संभाल रहे थे और पापा कोलकाता में नौकरी करते थे दादा जी कई बार कह चुके थे कि अपनी खेती को देखो… पर पापा को अपनी नौकरी अच्छी लगती थी हम सब छोटे थे तो एक दूसरे के यहां बिना रोक टोक आते थे कभी वो हमारे घर होते कभी हम तीनों भाई बहन उनके घर होते ।

सब लड़कियों में , मैं अकेला लड़का था तो वो जो खेलती मुझे भी वहीं खेलना पड़ता, जिस दिन इन सब लड़कियों का घर घर खेलने का इरादा हो जाता मैं फस जाता, मैं बहुत मना करता कि मुझे यह खेल नहीं खेलना पर फ़िर शेफाली की बहन कहती कि देख ले फिर हम किसी और को बुला कर इसका दूल्हा बना देगी तब मैं बिना ना नुकुर के मान जाता और खुशी खुशी शेफाली का दूल्हा बन जाता, तब ऐसा लगता कि दुनिया में कोई मेरे जितना खुशकिस्मत नहीं होगा खेल खेल में कब मैं शेफाली को प्यार करने लगा पता ही नहीं चला , बचपन का प्यार वेसे भी बचपन में पता कब चलता है ,

शेफाली की बड़ी बड़ी आंखें और बड़ी हो जाती जब वो देवाशीष के साथ होती उसकी खुशी उसकी आंखों में दिखाई देती ।

बेपनाह प्यार है आजा ,,,,, तेरा इंतजार है आजा

फोन की रिंग ने देवाशीष को वापस वर्तमान में ला दिया

ओह ,,,8 बजने वाले हैं , फोन में टाइम देखा और साथ ही दादी का नाम भी हेल्लो ,,, उधर से आवाज आई दादी की

जी दादी , तू आया नहीं देवा अभी तक 8 बजने को आए ,, नाश्ता भी कब का बन गया है

जी दादी ,, आप लोग नाश्ता कर लो मैं अभी नहीं आ सकता क्यू? देवा दादी यहां एक मरीज को मेरी बहुत जरूरत है उसे छोड़ कर अभी मैं नहीं आ सकता ।

आप चिंता मत करो मैं यहीं से कुछ मंगा कर खा लूंगा। ठीक है देवा ,,, अपना भी ध्यान रखना बेटा

ओके दादी ,,,, कह कर फोन को साइड में रख दिया देवाशीष ने ।

हेल्लो मिस्टर देवाशीष इंस्पेटर साहब आप इतनी सुबह सुबह ,, देवाशीष अपने सामने इंस्पेक्टर को देख चौक गया डॉक्टर साहब हमारा तो काम ही है लोगो की सेवा करना फिर क्या सुबह , और क्या शाम ।

जी , जी आइए बैठिए

जी शुक्रिया आपका

तो कुछ पता चला शेफाली के घर वालो का ,

शेफाली कौन ? इंस्पेक्टर ने पूछा उस लड़की इसका नाम शेफाली है इंस्पेक्टर साहब

तो आप जानते है उसे ,, आश्चर्य में देखते हुए पूछा इंस्पेक्टर साहब ने

जी हां यह मेरे बचपन की दोस्त है शेफाली ,

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1 Comments

Zakirhusain Abbas Chougule

27-Aug-2023 08:03 AM

Nice

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