महाकाल शिव
प्रतियोगिता हेतु रचना (भजन)
महाकाल शिव
************
हे त्रिपुरारी , डमरू धारी जगत के पालनहार।
एक हाथ त्रिशूल बिराजै गले सर्प के हार।।
तन पर भस्म रमाए बैठे जटा गंग जलधार।
जो कोई भी शरण में आता करते उसका उद्धार।।
महाकाल है नाम तुम्हारा रूप धरें विकराल।
दुष्टों का संहार हैं करते कालों के हैं महाकाल।।
सागर का मंथन हुआ जब गरल को कंठ उतारा।
नीलकंठ बन महादेव देवों को कष्टों से वारा।।
सब माहों में सावन माह है लगता सबसे प्यारा।
सावन माह में हर मंदिर में होता है भंडारा।।
सावन माह में भक्त भी कांवड़ में गंगा जल लाते ।
बम भोले का लगा के नारा शिव लिंग को नहलाते ।।
भक्तों का आलिंगन पाकर भोले भी खुश होते हैं।
भक्तों के प्रेम में वशीभूत सब कष्टों को हरते है।।
शिव को पाने को मां गौरी ने निर्जला उपवास किया था।
फिर शिव को पाकर गौरी ने सोलह श्रृंगार किया था।।
सावन के सोमवार में जो भोले का ब्रत करता है।
उसकी सभी मनोकामनाएं भोला पूरी करता है।।
सुबह से उठ कर भोले बाबा राम नाम जपते हैं।
मां गौरी के संग बिराजैं सबके कष्टों को हरते हैं।।
पथिक भी औघड़ दानी को हर पल वन्दन करता है।
पिता हमारे महादेव दिन-रात नमन करता है।।
स्वरचित:- विद्या शंकर अवस्थी पथिक कानपुर
Shashank मणि Yadava 'सनम'
29-Aug-2023 08:38 AM
बेहतरीन बेहतरीन बेहतरीन
Reply
Reena yadav
28-Aug-2023 08:17 PM
👍👍
Reply