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ये जागते जंगल - लेखनी प्रतियोगिता


ये जागते जंगल,
 
घने चीड़ बुरांश, देवदार,
चढ़ाइयाँ, उतराइयाँ, 
खालें, टिब्बे, गहराइयाँ,
चढ़ाइयाँ और उतराइयाँ।  

पर्वत के पीछे से झाँकते,
एक के बाद एक उगे अनेक,
पर्वत, उस के पीछे आकाश, 
असीम विस्तार,अशेष,अपरिमित,
धरती पर झरे रक्तिम द्रुम दल, 
दिखते हैं कमाल। 

एकांत वातावरण,
मानो योगी तपस्या कर रहा हो!
श्लोक रचता हुआ,
मौन विरुदावली, 
जंगल में गा रहा हो!

अनंत ऊंचाइयाँ पर्वतों की, 
जैसे दसों दिशाओं को देखतीं हों!
उन पर जमी बर्फानी लहरें,
ज्यों श्वेत दुशाला ओढ़े,
कोई तपस्विनी को लेखती हो!

ऊंचा आसमान मानों,
सतरंगी रंग बिखेर कर,
धरा पर नर नारियों संग,
त्योहार मना रहा हो!
रचियता - शोभा शर्मा #प्रतियोगिता 

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बेहतरीन

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