शिक्षक
शिक्षक
शिक्षक ही तो ज्ञान-पुंज से,
हमें प्रकाशित करते हैं।
ज्ञान-पुष्प की गंध लुटाकर,
सदा सुवासित रखते हैं।।
ज्ञान प्राप्त कर शिक्षक से ही,
मानव मानव बनते हैं।
श्रेष्ठ सोच को देकर शिक्षक,
दानवता को हरते हैं।
शिक्षक अपने अनुभव द्वारा,
नव विधान को गढ़ते हैं।
सदा सुवासित रखते हैं।।
बोध कराकर नित अक्षर का,
भाषा-ज्ञान बढ़ाते हैं।
शुद्ध आचरण करने का वे,
शुभ सिद्धांत बताते हैं।
ज्ञान-पुजारी होते शिक्षक,
मानवता ही पढ़ते हैं।
सदा सुवासित रखते हैं।।
जीने की ये कला सिखाते,
देव तुल्य शिक्षक होते।
सदा ज्ञान की बात बताते,
अक्षर के रक्षक होते।
राह दिखा कर स्वयं ही शिक्षक,
उन राहों पर चलते हैं।
सदा सुवासित रखते हैं।।
ज्ञान-दीप को सतत जलाकर,
हिय-अँधियार मिटाते हैं।
शिक्षक मन के सारे भ्रम को,
बिना देर निपटाते हैं।
नित प्रणम्य ये शिक्षक ही तो,
भाषा-ज्ञान परसते हैं।
सदा सुवासित रखते हैं।।
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©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
Gunjan Kamal
09-Sep-2023 03:39 PM
👏👌
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