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एक पल

विषय- एक पल
विधा-सायली छंद 

पल
बचपन के
चहकती खुशियों थीं
अब कहाँ
रहे।

रुकता
नहीं पल
इसकी फितरत है
आदमी के
जैसी।

बीते
पल आज
दुबारा मिले हैं
मिले न
शायद।

पल
सुकून के
तलाश करता नहीं
कौन है
ऐसा।

चैन
दो पल
आजीवन बोझ से
कहीं बेहतर
है।

वक्त
चक्र है
पल-पल घूमता
अच्छा कभी
बुरा।

जिंदगी
जीते हैं
सिर्फ किस्मत वाले
बाकी काटते 
हैं।

उद्यम
पल हैं
बिखरे क्षिति पर
उद्यमी है 
जिदंगी।

पल
वक्त के
सबके पास है
कहते कहाँ
वक्त।

जिंदगी
पल पल
लोगों को रुलाती
जीना नहीं
छोड़ते।

पल
जिंदगी के
रेत से फिसलते
अंतिम पड़ाव
"श्री"।


स्वरचित- सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान)


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4 Comments

Varsha_Upadhyay

05-Sep-2023 09:25 PM

बहुत खूब

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बहुत सुंदर लिखा

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