तलाश
तलाश
ढूंढता है आदमी, कुछ वजहें फिजूल सी
जिंदगी जुनून सी, तलाश है सुकून की।
हैं सामान शौक के, खूब इस बाजार में
नकद चाहे खरीद लो, मिलते हैं उधार में।
आदमी को चाहिए क्या, खुद उसे पता नहीं
मखमली हैं बिस्तरे, पर नींद है बेज़ार सी।
जुबां के जायके यहां, जिगर के बहुत पास हैं
हकीम, वैद सब के लिए, दोस्त बहुत खास हैं।
तरक्की खूब हो रही, हम जा रहे हैं चांद पे
दिलों के रास्ते मगर, अभी तलक मिले नहीं।
खून मीठे हो रहे, जिगर में दर्द सो रहे
फिर भी तल्ख बो रहे, जुबां पे रख के चाशनी।
नया ये अजब दौर है, दुनिया के नए तौर हैं
घर में बात हो ना हो, नेट पे पूरा ज़ोर है।
पहल तू है ढूंढता, क्या तुझे पता नहीं
मतलबों का दौर है, रिश्तों में अब वफा नहीं।।
आभार – नवीन पहल – १२.०९.२०२३ 😔😔
# दैनिक प्रतियोगिता हेतु कविता
Sushi saxena
13-Sep-2023 03:23 PM
V nice
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
13-Sep-2023 08:04 AM
Wahhhh wahhhh,,, खूबसूरत और बेहतरीन अभिव्यक्ति
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Abhinav ji
13-Sep-2023 12:35 AM
Nice
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