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दिल शीशा

शीशे सा नाजुक दिल मेरा, 

हर एक हाथ में पत्थर है।
डरता भी है दुखता भी है,
देखा पथरावी मंजर है।

ख्याल दिलवर का आते ही,
धक-धक बैचैनी बढ़ जाए।
पहलू में उनके जाने को,
इसकी बेताबी बढ़ जाए।

संगदिल से भरी ये दुनिया,
धोखा फरेब तैयार खड़े।
टूट बिखर रह जाए दिल ये,
बेबस बेवफा दरार पड़े।

हर पत्थर हमें बर्दाश्त था,
हर आह को हम सह ही गए।
इक पत्थर दिल को चीर गया,
दिल दरीच चकनाचूर हुए।

टूटा शीशा जर्रा-जर्रा,
फिर भी तेरा ही अक्स दिखे।
दिल में तड़प बस तेरे लिए,
संगदिल किस काबिल तू सखे।

दुनिया धोखा रिश्ता धोखा,
बरसाए अपनों ने पत्थर।
दिलवर ने दिल को ज़ख्म दिए,
घोंपे उसने गहरे नश्तर।

शीशा टूटा मैं भी बिखरा,
दिल के जख़्म भी रिसने लगे।
इश्क दरारें आँसू हुस्न के,
दिल को "श्री" बहलाने लगे।

स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान) 

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8 Comments

Abhinav ji

16-Sep-2023 07:35 AM

Very nice

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Varsha_Upadhyay

15-Sep-2023 04:15 PM

Nice 👍🏼

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खूबसूरत भाव

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