इश्क़-ए-ना'तराश
(हिस्सा- दूसरा)
दूर तन्हा खडी मैं तुझे देखती ही रही
नज़र से तू ओझल जब तक न हुआ
तूने सबको लगाया गले से मगर
कभी हाथ मेरे हाथ में भी डाल दे
मेरे सर पे धूप थी घनी घनी
साया जो दिखा मुझे वो था तेरा
मुझे ख़ुद से यूं दूर न कर
मुझे छाँव में अपनी पनाह दे
हल जिसको ना मैं कर सकी
वो पहेली बनकर तू रहा
मुश्किलों से मुझे निकाल कर
मुझे आसान राह पे डाल दे
समझ सके हो रोग तो भरो हामी
तबीब! न दे इलाज का झूठा दिलासा
मेरे मरने की वगरना तू दु'आएं कर
जीने की फिर मुझे दु'आ ना दे
~अलमास💎
Swati chourasia
16-Oct-2021 08:45 PM
Very beautiful 👌
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Aaliyah Haroon Kamil
17-Oct-2021 11:34 PM
Thank you Swati
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