Vipin Bansal

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नूर

गीत-कवि की न तुम कल्पना !

शायर की न शायरी !!
सूरज की न तुम किरणें ! 
चाँद का नूर नहीं !!
आँखे देख सब भूल गई ! 
किस नूर का तुम नूर हो !! 

मधुशालाएं भी हो जाएं खाली ! 
कितनी मय तेरी आँखो मे डाली !! 
छू कर तेरे लवो की लाली ! 
हवाएं भी हो गई देख दिवानी !!
कैसे होगा वो हैं बचा !
जिसने होगा तुझको रचा !!
आँखे देख सब भूल गई ! 
किस नूर का तुम नूर हो !! 

कैसे मैं कोंई गीत बनाऊं ! 
कलम को अपनी क्या समझाऊ !! 
रुप को तेरे कैसे आँके ! 
टूट रहे मेरे शब्दों के सांचे !! 
मदहोशी में वो होगा पडा ! 
जिसने तेरा रूप गड़ा !! 
आँखे देख सब भूल गई ! 
किस नूर का तुम नूर हो !! 

कैसी ये महामाया ! 
जिसने तेरा रूप बनाया !! 
कैसा होगा वो हैं सांचा ! 
जिसमें तेरा रूप समाया !! 
चाँद नहीं तु इस जमीं का ! 
ये कौन सा चाँद जमीं पे आया !! 
आँखे देख सब भूल गई ! 
किस नूर का तुम नूर हो !! 

चंदन पर लिपटे भुजंग हो जैसे ! 
उलझे हैं तेरे गेसू ऐसे !! 
खुद को तू समझ न पाया ! 
चंदन सी है तेरी काया !! 
रूप में जो तेरे डूबा ! 
लौटकर न वो वापस आया !! 
आँखे देख सब भूल गई ! 
किस नूर का तुम नूर हो !! 

     विपिन बंसल

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5 Comments

बेहद ही खूबसूरत रचना 👌👌

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Raushan

17-Oct-2021 09:45 PM

Behtareen

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Niraj Pandey

17-Oct-2021 09:41 PM

बहुत ही बेहतरीन

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