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ग़ज़ल

*ग़ज़ल*

जब तलक हाथ पांव चलते हैं। 
अपनी पोशाक हम बदलते हैं। 

लोग जो खुश दिली से मिलते हैं।
शहद वाणी में उनकी घुलते हैं। 

ज़द प आते न जो खि़जा़ओ की। 
वो शजर फूलते हैं फलते हैं। 

मॉब लिंचिंग को रोकिये साहिब। 
अब तो लट्ठ साधुओं पे चलते हैं।

जिनकी मंजि़ल प हो नज़र क़ायम। 
गिरके इंसा वही सम्भलते हैं ।

हुस्न और इश्क़ की तड़प देखो। 
वो इधर हम उधर मचलते हैं। 

ये तो उनकी मोहब्बतें हैं मियां। 
आसमां कब ज़मी पे चलते हैं।

जलने वाले तो वो हैं ऐ "शायर"।
चांद सूरज की तरह जलते हैं।


*शायर मुरादाबादी*




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2 Comments

बेहतरीन अभिव्यक्ति

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Reena yadav

25-Sep-2023 11:27 AM

👍👍

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