Add To collaction

गुल्लक

खन-खन सिक्के की सुनकर, उम्मीदें बाँध लीं हमने।

इक-इक पाई गुल्लक में, आरजू साध ली हमने।
छोटी-छोटी हैं खुशियां, उनके सपने भी छोटे।
ये नन्हे मुन्नों की दुनिया, नहीं हैं स्वार्थ के सपने।

भरोसा देती है गुल्लक, इक सपना हुआ पूरा।
बीस दस पांच के सिक्के, सजाएं ख्वाब अधूरा।
गुल्लक मिट्टी है फिरभी, मद से खूब खनकती है।
जुदा होते ही सिक्कों से, कर दे वजूद को चूरा।

सफाई रोज जेबों की, सिक्के गायब हो जाएं।
मोषक(चोर) घर में ही बैठे, न फिर भी चोर कहलाएं, 
निशि-दिन बढ़ता ही जाए, ढेरी कुबेर हो जैसे।
जरूरत सख्त हो जब भी, बापू सायल(प्रार्थी) बन जाएँ।

बचा कर रुपए कुछ सिक्के, माँ रखती थी चावल में।
बनारसी सलवटी तह में, पुरानी जेब छायल में।
जब भी जाए माँ मंदिर, खर्च कर देती गुल्लक को,
कभी मुन्ने की चप्पल में, कभी गुड़िया 'श्री' पायल में।

स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान) 

   23
12 Comments

सुन्दर सृजन

Reply

Sarita Shrivastava "Shri"

27-Sep-2023 07:20 PM

🙏🙏

Reply

👌👌👏👏 बेहतरीन रचना सरिता जी 💐💐

Reply

Sarita Shrivastava "Shri"

27-Sep-2023 07:20 PM

🙏🙏

Reply

Reena yadav

25-Sep-2023 08:21 PM

👍👍

Reply

Sarita Shrivastava "Shri"

26-Sep-2023 06:42 AM

🙏🙏

Reply

Sarita Shrivastava "Shri"

27-Sep-2023 07:20 PM

🙏🙏

Reply